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हिंदू आस्था का बड़ा केंद्र है बांग्लादेश का ढाकेश्वरी मंदिर, यहीं गिरा था देवी सती के मुकुट का रत्न

Chikheang 2025-9-27 21:50:32 views 569

  आस्था, इतिहास और संस्कृति का संगम है ढाकेश्वरी मंदिर (Image Source: X)





लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश की राजधानी ढाका का नाम सुनते ही आज सबसे पहले शहर की चहल-पहल और आधुनिक जीवन की तस्वीर सामने आती है, लेकिन इसी शहर की आत्मा में एक प्राचीन आस्था भी बसी हुई है- ढाकेश्वरी मंदिर। यह मंदिर न केवल बांग्लादेश का राष्ट्रीय मंदिर माना जाता है, बल्कि हिंदू समुदाय की आस्था का सबसे प्रमुख केंद्र भी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पौराणिक मान्यता और महत्व

किंवदंती के अनुसार, जब सती माता का शरीर भगवान शिव द्वारा पृथ्वी पर विचरण करते समय खंड-खंड होकर गिरा था, तब उनके मुकुट का रत्न इसी स्थान पर गिरा। यही कारण है कि ढाकेश्वरी मंदिर को शक्ति पीठों में गिना जाता है। यहां विराजमान देवी को शक्ति का स्वरूप माना जाता है और भक्त उन्हें मां ढाकेश्वरी के नाम से पुकारते हैं।


ढाकेश्वरी मंदिर का इतिहास

इतिहासकार मानते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा बल्लाल सेन ने करवाया था। समय-समय पर इस मंदिर ने कई उतार-चढ़ाव देखे। कभी आक्रमणों से क्षतिग्रस्त हुआ, तो कभी नवजीवन पाकर और भव्य बना। आज भी इसकी दीवारें और प्रांगण उस बीते युग की कहानियां सुनाते हैं।
स्थापत्य कला की झलक

ढाकेश्वरी मंदिर की बनावट में मध्यकालीन बंगाल की झलक साफ दिखाई देती है। मुख्य गर्भगृह में देवी की प्रतिमा स्थापित है, जबकि इसके चारों ओर छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। खास बात यह है कि उत्तरी हिस्से में भगवान शिव के चार समान मंदिर स्थित हैं, जिनमें शिवलिंग स्थापित किए गए हैं। मंदिर की स्थापत्य शैली न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी अद्वितीय है।


स्वतंत्रता संग्राम और पुनर्निर्माण

1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तानी हमलों में मंदिर को भारी नुकसान हुआ। इसके बावजूद आस्था डगमगाई नहीं। बाद में मंदिर का नवीनीकरण किया गया और इसे फिर से सजाया-संवारा गया। प्राचीन मूर्ति को विभाजन के समय सुरक्षा कारणों से पश्चिम बंगाल ले जाया गया था और अब यहां उसकी प्रतिकृति स्थापित है। देवी की यह प्रतिमा महिषासुरमर्दिनी रूप में है, जिनके साथ लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिक की मूर्तियां भी विराजमान हैं।


सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक

1996 में इस मंदिर को \“ढाकेश्वरी राष्ट्रीय मंदिर\“ का दर्जा मिला। यह मंदिर केवल पूजा-पाठ का स्थान नहीं है, बल्कि बांग्लादेश की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी बन चुका है। नवरात्र और अन्य पर्वों पर यहां विशेष अनुष्ठान होते हैं, जिनमें हजारों भक्त शामिल होते हैं।

ढाका का ढाकेश्वरी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इतिहास, संस्कृति और आस्था का संगम भी है। 12वीं सदी से लेकर आज तक यह मंदिर हिंदू समुदाय की आस्था का केंद्र बना हुआ है और ढाका शहर की पहचान से गहराई से जुड़ा हुआ है।



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