तीन वर्ष से नहीं जलाई पराली, गांव को लोगों ने भी प्रेरित होकर न जलाने की खाई कसम (फोटो: जागरण)  
 
  
 
जागरण संवाददाता, जालंधर। जमीन कम थी पराली निस्तारण के लिए उपकरण नहीं मिलते थे, इसलिए पराली जलाना मजबूरी थी, फिर पराली से होने के बारे में दुष्प्रभावों को गंभीरता से लिया।  
 
साथ की जमीन ठेके पर लेकर खेती शुरू की और पराली निस्तारण के लिए उपकरणों का प्रबंध किया। जंडियाला कस्बे के पास सरहाली गांव के किसान जोगा सिंह अब पराली नहीं जला रहे।  
 
इतना ही नहीं पूरे गांव को मदद की और पराली जलाने से मुक्त किया। अब पूरा गांव पराली न जलाने की शपथ ले चुका है। इस वर्ष गांव में एक भी किसान ने पराली नहीं जलाई।  
 
जोगा सिंह खेतों में पराली न जलाने और हल चलाने के फायदों से इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने अपने गांव के अन्य किसानों को भी खेतों में पराली न जलाने के लिए जागरूक करना शुरू कर दिया।  
 
किसान जोगा सिंह और उनके भाई पूर्व सरपंच परगट सिंह सरहाली जो किसान संगठन से जुड़े हैं, ने घर-घर जाकर किसानों को खेतों में पराली न जलाने के लिए प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा रंग लाई और इस वर्ष पूरे गांव ने खेतों में पराली न जलाने की कसम खाई है। किसान जोगा सिंह का कहना है कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि गांव के सभी किसान भाई अपना संकल्प निभाएंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
हालांकि, 2024 के सीजन के दौरान गांव में पिछले वर्षों की तुलना में पराली में आग लगाने के केवल 25 प्रतिशत मामले ही सामने आए। गांव सरहाली निवासी किसान जोगा सिंह ने बताया कि उन्होंने तीन वर्ष पहले 2022 में धान की पराली न जलाने का फैसला किया था और तब से वे खेतों में पराली को जोतकर गेहूं और अन्य फसलों की बुवाई कर रहे हैं।  
 
जोगा सिंह एक छोटे किसान हैं और उनकी अपनी जमीन ढाई एकड़ है, लेकिन वे जमीन पट्टे पर लेकर लगभग 45 एकड़ ज़मीन पर खेती कर रहे हैं। वे गेहूं, सरसों, गन्ना, धान और सब्जियों की खेती करते हैं। वे पिछले कुछ वर्षों से सुपरसीडर से गेहूं की बुवाई कर रहे हैं, जिसके सार्थक परिणाम मिल रहे हैं।  
 
खेतों में आग न लगाने और पराली को जमीन में जोतने के फायदों के बारे में बात करते हुए किसान जोगा सिंह ने कहा कि पराली जलाने से जहां प्रदूषण होता है, वहीं उसे खेतों में जोतने से खाद का काम होता है और जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।  
 
उसमें नमी होने के कारण बोई गई फसल को पानी की भी कम जरूरत होती है। इससे फसल बिना रासायनिक खाद के तैयार हो जाती है और भूजल की भी बचत होती है। इससे फसल का उत्पादन बढ़ता है, जिससे किसान की आमदनी भी बढ़ती है।  
 
अगर हम खेतों में पराली जलाते हैं, तो इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है, जिससे वे खुद उनके परिवार और गांव के लोग तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।   
 
किसान जोगा सिंह ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार छोटे किसानों को ट्रैक्टर पर सब्सिडी नहीं देती, जिससे वे खेतों में जुताई करने की बजाय पराली जलाने को मजबूर हैं। उन्होंने मांग की कि पंजाब सरकार सामान्य वर्ग के छोटे किसानों को भी ट्रैक्टर पर सब्सिडी दे ताकि वे पराली वाले खेतों में जुताई कर सकें। 
 
किसान जोगा सिंह ने बताया कि पराली न जलाने के लिए किसानों को जागरूक करने के अलावा जिन किसानों के पास पराली प्रबंधन के लिए आवश्यक मशीनरी नहीं है, उनकी भी मदद की जाती है।  
 
उन्होंने बताया कि संबंधित किसान को केवल ट्रैक्टर में तेल भरवाने के लिए कहा जाता है, वे बिना किसी खर्चे के उसके खेतों की पराली की जुताई कर देते हैं। वे पिछले कुछ वर्षों से ऐसा कर रहे हैं और अन्य प्रगतिशील किसान, जिनके पास अपनी मशीनरी है, वे भी अन्य किसानों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। |