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Bihar Election 2025: फुलवारीशरीफ में NDA की दावेदारी में उलझन, महागठबंधन से भाकपा माले का चेहरा_deltin51

LHC0088 2025-9-27 17:36:14 views 826

  राजग से दो दावेदार ठोक रहे ताल, महागठबंधन से भाकपा माले का चेहरा





पवन कुमार मिश्र, पटना। शहरी-ग्रामीण आबादी वाली पाटलिपुत्र लोकसभा की फुलवारीशरीफ विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। 1977 में फुलवारी विधानसभा क्षेत्र का गठन हुआ और अबतक 12 चुनाव हो चुके हैं।

इनमें सबसे अधिक चार बार महागठंधन के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने चार, कांग्रेस ने तीन व जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने दो बार जीत हासिल की है। इसके अलावा एक-एक बार जनता पार्टी, जनता दल व भाकपा माले को जनता ने मौका दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



गत तीन विधानसभा चुनावों (2010, 2015, 2020) में यहां से महागठबंधन के राजद और एक बार भाकपा-माले ने जीत हासिल की है।

2019 में नौबतपुर निर्वाचन क्षेत्र के पुनपुन प्रखंड की अनुसूचित जाति बहुल 20 पंचायतों के फुलवारीशरीफ विधानसभा क्षेत्र में शामिल होने के बाद राजद ने पहली बार भाकपा माले को यह सीट दी थी।
जदयू के अरुण मांझी को मिली हार

प्रत्याशी बनाए गए गोपाल रविदास गठबंधन के निर्णय व दल के विश्वास पर खरे भी उतरे, उन्होंने पहली ही बार में 91 हजार से अधिक मत प्राप्त कर जदयू के अरुण मांझी को 13 हजार 857 मतों से हराया था।



आसन्न विधानसभा चुनाव में भी राजग के जदयू व महागठबंधन के भाकपा-माले प्रत्याशी के बीच ही टक्कर की बात कही जा रही है।

हालांकि, इस बार जदयू से अरुण मांझी के अलावा एक वर्ष पूर्व राजद से जदयू में लौटे श्याम रजक भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
6 बार जीते श्याम रजक

श्याम रजक फुलवारीशरीफ विधानसभा सीट से सर्वाधिक छह, एक बार जनता दल, तीन बार राजद व दो बार जदयू से जीत हासिल कर चुके हैं।



क्षेत्र में अरुण मांझी, श्याम रजक के अलावा भाकपा माले के गोपाल रविदास के समर्थकों ने जनसंपर्क समेत अन्य तैयारियां शुरू कर दी हैं।

श्याम रजक व अरुण मांझी दोनों की दावेदारी राजग को भारी पड़ने की बात कही जा रही है। वहीं, एआईएमआईएम और जन सुराज समेत अन्य दलों से कौन प्रत्याशी होगा, अभी तक तय नहीं हुआ है।
74 प्रतिशत ग्रामीण मतदाता तय करते जीत-हार

फुलवारीशरीफ ग्राम प्रधान विधानसभा सीट है। यहां लगभग 26 प्रतिशत शहरी और 74 प्रतिशत ग्रामीण आबादी है। सुरक्षित सीट होने के कारण यहां अनुसूचित जाति का बाहुल्य है, लेकिन पिछड़ा व मुस्लिम वोट भी निर्णायक साबित होते हैं।Google 27th birthday,Google search engine,Larry Page Sergey Brin,Google history,Google milestones,Google facts,Google founders,Google Android YouTube,Google headquarters,Technology news   



बिहार जाति सर्वे 2023 के अनुसार यहां ओबीसी-ईबीसी (पिछड़ा-अतिपिछड़ा) आबादी 63 प्रतिशत है। ऐसे में इसका जीत-हार से सीधा संबंध है।

2020 के आंकड़ों के अनुसार फुलवारीशरीफ में 23.45 प्रतिशत अनुसूचित जाति, लगभग 15 प्रतिशत यादव व कुशवाहा जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग लगभग 15 प्रतिशत हैं। मुस्लिम भी लगभग 15 प्रतिशत है।

इसके अलावा भूमिहार, राजपूत व अन्य जातियां हैं। ग्रामीण क्षेत्र की अनुसूचित जाति को भाकपा-माले का कैडर वोट माना जाता है। यादव व मुस्लिम का झुकाव राजद के कारण महागठबंधन की ओर रहता है।


14 पंचायतों में भाकपा-माले के मुखिया-सरपंच

जदयू कार्यकर्ताओं के अनुसार नौबतपुर से अलग होकर पुनपुन प्रखंड की जो 20 पंचायतें शामिल हुईं हैं, उनमें से 14 में भाकपा-माले के मुखिया-सरपंच हैं।

उसे सबसे ज्यादा वोट उसी क्षेत्र से मिलते हैं। इस बार अनुसूचित जाति वोटों में सेंधमारी के लिए राजग खास रणनीति पर काम कर रहा है।

अंतिम मतदाता सूची के बाद तय होंगे प्रत्याशी मतदाता गहन पुनरीक्षण की प्रारूप सूची में फुलवारी निर्वाचन क्षेत्र से दीघा, बांकीपुर, मसौढ़ी के बाद सर्वाधिक मतदाताओं के नाम हटे हैं। यहां 34 हजार 986 मृत, स्थायी रूप से स्थानांतरित या दूसरी विधानसभा में पंजीकृत लोगों के नाम हटे हैं।


66 प्रतिशत मतदान के लिए विशेष अभियान

30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन होगा। इसके बाद ही राजग के घटक दल जदयू, एआइएमआइएम व जनसुराज जैसे दल अपने प्रत्याशियों के नाम तय करेंगी।

शहरी क्षेत्र व महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी तो बदलेगा गणित विभिन्न दलों के नेताओं के अनुसार यदि फुलवारी शहरी क्षेत्र व महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा तो पहली बार जातीय समीकरण का गणित गड़बड़ा सकता है।



इस बार निर्वाचन आयोग भी 66 प्रतिशत मतदान के लिए विशेष अभियान चला रहा है। इसमें भी खास जोर महिलाओं व उन शहरी बूथों पर दिया जा रहा है, जहां मतदान प्रतिशत काफी कम है।

कुल मिलाकर इस बार भी यहां कांटे की टक्कर होगी, बस राजग के संभावित प्रत्याशी एक-दूसरे का विरोध नहीं करें।

  

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