लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी। (फाइल फोटो)
संजय मिश्र, जागरण। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने बिहार चुनाव से ठीक पहले दस सूत्री ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र’ के जरिए जहां एक ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे मजबूत अति पिछड़ा वर्ग के सामाजिक आधार को दरकाने का बड़ा दांव चल दिया है तो दूसरी तरफ सामाजिक न्याय की राजनीति के एजेंड़े पर राजद तथा सपा जैसे अपने साथी दलों से आगे निकलते नजर आ रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
चुनावी राजनीति से लेकर पार्टी के नीतिगत दृष्टिकोण में कांग्रेस जिस तरह नेता विपक्ष की जातीय जनगणना की पैरोकारी, ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाने से लेकर शासन व्यवस्था में आबादी के हिसाब से भागीदारी देने जैसे एजेंड़े को गति दे रही है कि उसमें सामाजिक न्याय की पहरूआ माने जाने वाली समाजवादी धारा की पार्टियां फिलहाल पीछे छूटती दिख रही हैं।
धीर-धीरे पकड़ मजबूत कर रहे राहुल गांधी
तेलंगाना के उपरांत कर्नाटक में दो दिन पहले शुरू हुई जाति जनगणना की पहल के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की मौजूदगी में पटना में राहुल गांधी का अति पिछड़ाें के लिए 10 सूत्रीय संकल्प की घोषणा इसका ताजा प्रमाण है। बिहार चुनाव के मद्देनजर सूबे में महागठबंधन की सबसे बड़ी साझेदार राजद अति पिछड़ा संकल्प घोषणा में बेशक अपने लिए चुनावी फायदा देख रही है मगर इसमें कोई संदेह नहीं कि सामाजिक न्याय की राजनीति के एजेंडे पर राहुल गांधी धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत करते जा रहे हैं।
सपा और राजद जैसी पार्टियों की बागडोर कांग्रेस के हवाले
साफ तौर उनकी यह काेशिश मंडल युग के बाद की बदली राजनीति में कांग्रेस के ओबीसी वर्ग में कमजोर हुए सामाजिक आधार का विस्तार करने की गंभीर पहल का हिस्सा है। दिलचस्प यह भी है कि गैर कांग्रेसवाद का नारा बुलंद कर मंडल दौर में सामाजिक न्याय का झंड़ा बुलंद कर अपनी राजनीति स्थापित करने वाली सपा और राजद जैसी पार्टियां राष्ट्रीय राजनीति के बदले परिदृश्य में अब सामाजिक न्याय के एजेंडे की बागडोर कांग्रेस के हवाले करते दिख रही है।
अति पिछड़ा संकल्प घोषणा जारी करने के मौके पर भले राजद नेता तेजस्वी यादव मौजूद थे और इसे महागठबंधन के साझा संकल्प के तौर पर पेश किया गया मगर हकीकत यह भी है कि राहुल गांधी के निर्देशन में इसकी पूरी संरचना की कमान कांग्रेस के हाथों में रही। सामाजिक न्याय के अपने एजेंडे को पूरी शिद्दत से आगे बढ़ाने की कांग्रेस की तत्परता का संकेत इस बात से भी मिलता है कि पटना में बुधवार को अति पिछड़ा संकल्प जारी करने के बाद गुरूवार को राहुल गांधी ने अपने एक्स हैंडल पर इसकी तस्वीर के साथ इसको लेकर अपनी प्रतिबद्धता प्रकट करने का अवसर नहीं गंवाया।
Devendra Fadnavis,Rahul Gandhi criticism,PM Modi leadership,Maharashtra politics,BJP future plans,Indian political landscape,Fadnavis on caste politics
इस पोस्ट में नेता विपक्ष ने कहा कि अति पिछड़ा संकल्प का 10 सूत्रीय कार्यक्रम सिर्फ शिक्षा नहीं, बल्कि अति पिछड़ों की बराबरी और सम्मान की लड़ाई है। यही है सच्चा सामाजिक न्याय और समान विकास की गारंटी। कहा भाजपा चाहे जितने भी झूठ और ध्यान भटकाने की साजिश करे, हम अतिपिछड़े, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े समाज को उनका पूरा हक दिलाने के लिए संकल्पित हैं।
कांग्रेस का 10 सूत्री अति पिछड़ा संकल्प
खास बात है कि इस 10 सूत्री अति पिछड़ा संकल्प बिहार चुनाव तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के नीतिगत दस्तावेजों का हिस्सा भी बनेगा। राहुल गांधी की यह पहल स्पष्ट रूप से बिहार और उत्तरप्रदेश समेत उन प्रदेशों में कांग्रेस का सामाजिक आधार बढ़ाने पर केंद्रित है जहां सामाजिक न्याय की राजनीति ने उससे हाशिए पर धकेल दिया।
सपा और राजद की चिंता में होगा इजाफा
सामाजिक न्याय के एजेंडे पर कांग्रेस की यह मुखरता खासतौर पर सपा और राजद की चिंता में इजाफा करने वाली हैं। लेकिन मुखर राष्ट्रवाद के साथ क्षेत्रीय दलों को राजनीतिक हाशिए पर ले जाने की भाजपा की सियासत को देखते हुए कांग्रेस के साथ कदम ताल कर चलना फिलहाल इन दलों की जरूरत है। इसीलिए सितंबर 2022 में जब से राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा से सामाजिक न्याय के एजेंडे को धार देने की शुरूआत की तब से वे लगातार इस पिच पर समाजवादी धारा की पार्टियां को पीछे छोड़ रहे हैं।
डेढ़ दशक पहले जातीय जनगणना की मांग इन पार्टियाें ने जरूर की मगर केवल दो साल में राहुल गांधी ने इसे राष्ट्रीय विमर्श की धुरी बनाया और इसके सियासी दबाव में एनडीए-भाजपा सरकार को अगली जनगणना के संग जातीय गणना कराने की घोषणा करनी पड़ी। केंद्र सरकार में उच्च स्तर पर लेटरल इंट्री से लेकर ओबीसी आरक्षण की वर्तमान 50 फीसद कैपिंग मामले में भी समाजवादी धारा की पार्टियां संसद से सड़क तक राहुल गांधी के पीछे-पीछे चलने को बाध्य हुईं।
तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जातीय जनगणना कराने के बाद कुछ महीने पहले आरक्षण की कैपिंग हटाने का विधेयक पारित करा तो अब कर्नाटक की सिद्धरमैया सरकार ने जातीय सर्वेक्षण शुरू कर राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के एजेंड़े को मजबूती देने की कोशिश की है।
यह भी पढ़ें- \“राहुल गांधी जवान बहन को चौराहे पर चूमते हैं\“, कैलाश विजयवर्गीय का कांग्रेस नेता पर बड़ा हमला |