जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। पुरी जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद में अब ढेंकानाल की धरा की खुशबू बसने जा रही है। कंकड़ाहाड़ ब्लॉक की 21 पंचायतों में उगने वाला पारंपरिक सुगंधित चावल अब भगवान जगन्नाथ को अर्पित होगा। खास बात यह है कि यह चावल पूरी तरह जैविक खेती से तैयार किया जाता है, बिना किसी रासायनिक खाद और कीटनाशक के। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
1,500 किसानों की आस्था और परिश्रम की फसल
करीब 1,500 किसान लगभग 1,100 हेक्टेयर जमीन पर इस परंपरागत चावल की खेती कर रहे हैं। खेती से लेकर भंडारण तक, हर चरण में शुद्धता और परंपरा का ध्यान रखा जाता है। बादशाह भोग, गीतांजलि केतकीजुहार, काला जीरा, तिलक कस्तूरी, इंद्राणी जैसी सुगंधित किस्में शामिल हैं।
इन किस्मों की महक इतनी गहरी है कि पकने से पहले ही पूरे घर को महका देती है। यही कारण है कि इसे महाप्रसाद में शामिल करने का निर्णय लिया गया है।
श्रीजगन्नाथ को अर्पण, किसानों के लिए गर्व का क्षण
स्थानीय संगठन इन धानों को किसानों से सीधे खरीदकर पुरी मंदिर तक पहुंचाएंगे। किसान गर्व से कहते हैं कि हमारी फसल प्रभु के थाल तक पहुंचे, इससे बड़ा आशीर्वाद और क्या होगा। सिर्फ आस्था ही नहीं, इस कदम से आमदनी में भी इजाफा हुआ है।
किसानों की मेहनत पहुंची विदेश तक
बीते वर्ष 700 हेक्टेयर में हुई खेती इस साल 1,100 हेक्टेयर तक पहुंच गई। वर्तमान में इसकी कीमत 4,100 रुपये प्रति क्विंटल है। मांग इतनी बढ़ गई है कि इसकी सुगंध दुबई तक जा पहुंची है।
सरकार का सहारा मिले, तो बनेगा वैश्विक ब्रांड
किसानों का कहना है कि यदि सरकार प्रोत्साहन दे, तो कंकड़ाहाड़ की यह सुगंधित धान न सिर्फ ओडिशा, बल्कि जगन्नाथ महाप्रसाद के नाम से दुनिया भर में अपनी पहचान बना सकती है। |