नवरात्र में तीन तिथियों का सर्वाधिक महत्व।
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। गोरखपुर में 1896 में एक मूर्ति की स्थापना से शुरू हुई दुर्गा पूजा, आज लगभग ढाई हजार जगहों पर यह लोक उत्सव का रूप ले चुकी है। पंडालों से भक्ति और श्रद्धा की आभा निकल रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
शहर के हृदय स्थल गोलघर से लेकर बाहरी इलाकों तक में बनाए गए सुंदर व आकर्षक पंडाल मंदिर की तरह दिख रहे हैं। कहीं ताजे तो कहीं कृत्रिम फूल-पत्तियों से उन्हें सजाया गया है। इस बार पंडालों के निर्माण में बांस का प्रयोग कम जगहों पर किया गया है, ज्यादातर जगहों पर लोहे के खंभों पर पंडाल तैयार किए गए हैं।
पं. शरदचंद्र मिश्र ने बताया कि नवरात्र में तीन तिथियों का सर्वाधिक महत्त्व है। ये तिथियां - सप्तमी, अष्टमी और नवमी हैं। महासप्तमी के दिन पंडालों में मिट्टी की मूर्तियों की स्थापना की जाती है। महाष्टमी को देवी के निमित्त व्रत और सविधि पूजन किया जाता है। महानवमी के दिन पूजन और व्रत की परिपूर्ति के लिए हवन किया जाता है।
- महा सप्तमी विचार - यह 29 सितंबर दिन सोमवार को है। रात्रि में अष्टमी होने से महानिशा पूजन इसी दिन होगा। इसी दिन मां की मूर्तियां स्थापित की जाएंगी।
- महाष्टमी विचार- यह 30 सितंबर दिन मंगलवार को है। महाष्टमी व्रत इसी दिन किया जाएगा।
- महा नवमी व्रत- यह एक अक्टूबर दिन बुधवार को है। इसी दिन हवन व कन्या पूजन किया जाएगा।
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्र में जितना दुर्गा पूजन का महत्व है उतना ही कन्या पूजन का भी। देवी पुराण के अनुसार इंद्रदेव ने जब ब्रह्मा जी से भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कुमारी पूजन ही बताया।ghaziabad-general,Ghaziabad News,Ghaziabad Latest News,Ghaziabad News in Hindi,Ghaziabad Samachar,Ghaziabad News,Ghaziabad Latest News,Ghaziabad News in Hindi,Ghaziabad Samachar,Government High Schools Ghaziabad,Karkad Model School Ghaziabad,Bhadoli High School,Ghaziabad Education News,New Schools in Ghaziabad,School Construction Ghaziabad,Uttar Pradesh news
कहा कि भगवती जप, ध्यान, पूजन और हवन से भी उतनी प्रसन्न नहीं होती हैं जितनी कि कुमारी पूजन से होती हैं। नवरात्र में अन्य कोई पूजा अनुष्ठान न करके मात्र एक अथवा नौ कन्याओं की प्रतिदिन भक्ति भावना से पूजा-अर्चना की जाए तो वह भी दुर्गा पूजा अनुष्ठान के समान ही फलदायक होती है।
कामना भेद से पूजन के लिए कन्याओं का चयन
कुमारी पूजन विभिन्न कामनाओं के निमित्त किया जा सकता है। कन्याओं की अवस्था के अनुसार उनकी अलग-अलग संज्ञाएं बताई गई हैं। इन अलग- अलग संज्ञाओं से युक्त कन्याएं अलग-अलग मनोकामना की पूर्ति करने वाली होती हैं। शास्त्रों में एक वर्ष की कन्या के पूजन को निषिद्ध बताया गया है।
दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या रोहिणी, छह वर्ष की कन्या कालिका, सात वर्ष की कन्या चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी संज्ञा से विभूषित है। इसी तरह नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा और 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा के नाम से जानी जाती है।
संज्ञाओं के अनुसार प्राप्त होने वाले फल
- कुमारी पूजन का फल- दुख-दरिद्रता का नाश, शत्रुओं का नाश और आयु में वृद्धि।
- त्रिमूर्ति पूजन का फल- आयु में वृद्धि, धर्म और काम की प्राप्ति, अपमृत्यु योग का विनाश, व्याधि का नाश।
- कल्याणी पूजन का फल- धन-धान्य और सुख की वृद्धि, पुत्र - पौत्रादि की प्राप्ति।
- रोहिणी पूजन का फल- आरोग्य की प्राप्ति, सुख-समृद्धि, सम्मान की प्राप्ति।
- कालिका पूजन का फल- विद्या तथा प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता की प्राप्ति, उच्च पद की प्राप्ति, शत्रु विनाश।
- चण्डिका पूजन का फल- शत्रुओं पर विजय।
- शाम्भवी पूजन का फल- दुख एवं दरिद्रता का विनाश, राजा या उच्चाधिकारी की कृपा प्राप्ति।
- दुर्गा पूजन का फल- शत्रुओं पर विजय, शत्रु कृत बाधा एवं दुर्भाग्य से मुक्ति।
- सुभद्रा पूजन का फल- सौभाग्य और धन- धान्य की प्राप्ति, मनोकामना की पूर्ति, सहायकों की संख्या में वृद्धि।
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