रुपये में गिरावट जारी ज्यादा हस्तक्षेप करने के मूड में नहीं RBI (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है। मंगलवार को रुपया 47 पैसे कमजोर होकर 88.75 पर बंद हुआ। यह रुपये का अब तक का सबसे न्यूनतम स्तर है।
लेकिन रुपये में हो रही है गिरावट को रोकने को लेकर अभी ना तो सरकार बहुत ज्यादा बेचैन है और ना ही आरबीआइ। वजह यह है कि वैश्विक अस्थिरता के इस माहौल में, खास तौर पर अमेरिका की तरफ से भारतीय आयात पर दुनिया में सर्वाधिक 50 फीसद का टैक्स लगाने के बाद रुपये की कमजोरी से भारतीय निर्यातकों को अल्पकालिक राहत मिलने की उम्मीद है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
आयातकों के लिए महंगा सौदा
वैसे आयातकों के लिए यह महंगा सौदा है क्योंकि आयातित कच्चे माल की लागत बढ़ रही है। इसके बावजूद जानकारों का कहना है कि ट्रंप की शुल्क नीति के बाद विश्व बाजार में अपने उत्पाद बेचने के लिए चीन, विएतनाम, श्रीलंका, इंडोनेशिया, तुर्की, मिस्त्र जैसे देशों के निर्यातकों की तरफ से काफी आक्रामक रणनीति अपनाई जा रही है, भारतीय रुपये के कमजोर होने से भारत के निर्यातकों को प्रतिस्पद्र्धा बने रहने में मदद मिलेगी।
रुपये में गिरावट के पीछे जानकार मुख्य तौर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को ही कारण बता रहे हैं। वैसे दूसरे एशियाई देशों की मुद्राओं में भी गिरावट है लेकिन भारतीय रुपया सबसे ज्यादा कमजोर हुआ है। इसके पीछे कारण यह है कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों का सबसे ज्यादा निशाना भारत को ही बनाया गया है।
भारत पर 50 फीसद शुल्क लगाने के साथ ही एच-1बी वीजा को लेकर अमेरिका की नीति बदलने से भारतीय बाजार से संस्थागत निवेशकों के बाहर निकलने की आशंका भी जताई जा रही है। एचडीएफसी सिक्यूरिटीज रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार का कहना है कि, “भारतीय रुपये में गिरावट ज्यादा तेज है।
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क्यों कमजोर है मुद्रा
अभी यह डॉलर के मुकाबले एशिया में सबसे कमजोर मुद्रा बन गया है। इसका एक बड़ा कारण बाहरी अनिश्चितता और विदेशी फंड का भारतीय बाजार से निकासी है। घरेलू स्तर पर सारे आंकड़े मजबूत हैं लेकिन बाहरी कारणों से रुपये में कमजोरी है। यह स्थिति निकट भविष्य में भी बने रहने की संभावना है।\“\“
मुद्रा बाजार के सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ हफ्तों से बाजार में आरबीआइ की हस्तक्षेप कम हुआ है। यह आरबीआइ की सोची समझरी रणनीति हो सकती है। जब रुपया बहुत ज्यादा अस्थिर होगा तभी केंद्रीय बैंक अब हस्तक्षेप करने को आगे आएगा। यह माना जा रहा है कि अगर भारत और अमेरिका के बीच कारोबार समझौता नहीं होता है तो इसका असर अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात पर हो सकता है।
शोध एजेंसी जीटीआरआइ ने कहा है कि अगस्त, 2025 में भारत से अमेरिका को होने वाला निर्यात (मई, 2025 के मुकाबले) 22 फीसद कमी आई है। अब सब कुछ दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते पर हो रही वार्ता पर निर्भर है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस (एफआईईओ) के अध्यक्ष एस.सी. रल्हन का कहना है कि रुपये की गिरावट अल्पकाल में निर्यातकों के लिए फायदेमंद है, लेकिन डॉलर के मुकाबले स्थिरता जरूरी है।
100 रुपये प्रति डॉलर पहुंच सकता है रुपया
वह यह भी मानते हैं कि अस्थिरता किसी के लिए अच्छी नहीं है। मुंबई के निर्यातक और टेक्नोक्राफ्ट इंडस्ट्रीज लिमिटेड के संस्थापक अध्यक्ष एसके सराफ का कहना है कि रुपये की कमजोरी से घरेलू सामान अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे, खासकर जब अमेरिका ने ऊंचे शुल्क लागू किए हैं। उनका अनुमान है कि अगले 4-5 महीनों में रुपया 100 प्रति डॉलर तक पहुंच सकता है। रुपये की कमजोरी से निर्यातकों को अधिक रुपये प्राप्त होंगे, लेकिन आयातकों को समान मात्रा और कीमत के लिए अधिक खर्च करना पड़ेगा।
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