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राष्ट्रवादी सोच के साथ देश को आगे ले जाने का मार्गदर्शक ग्रंथ, संविधान दिवस पर बोलीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु

LHC0088 2025-11-27 04:39:30 views 886

  

संविधान राष्ट्रवादी सोच का ग्रंथ: राष्ट्रपति मुर्मु



डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बुधवार को कहा कि संविधान औपनिवेशिक मानसिकता को त्यागकर राष्ट्रवादी सोच के साथ देश को आगे ले जाने के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ है। संवैधानिक आदर्शों में निहित सर्व-समावेशी दृष्टिकोण हमारी शासन प्रणाली को दिशा प्रदान करता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि हमारी संसद के मार्गदर्शन में देश को एक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प अवश्य पूरा होगा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने देशवासियों से संविधान के आदर्शों को बनाए रखने तथा 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का आह्वान किया।
संविधान राष्ट्रवादी सोच का ग्रंथ: राष्ट्रपति मुर्मु

संविधान सदन के प्रतिष्ठित केंद्रीय कक्ष में संविधान दिवस समारोह में राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि संसदीय प्रणाली को अपनाने के पक्ष में संविधान सभा में दिए गए सटीक तर्क आज भी प्रासंगिक हैं। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में जन आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने वाली भारतीय संसद आज विश्व भर के कई लोकतंत्रों के लिए एक उदाहरण है।

हमारे संविधान की आत्मा को व्यक्त करने वाले आदर्श हैं - सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय; स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व। संसद के सदस्य हमारे संविधान और लोकतंत्र की गौरवशाली परंपरा के वाहक, निर्माता और साक्षी हैं।
2047 तक विकसित राष्ट्र का संकल्प

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान हमारे राष्ट्रीय गौरव का दस्तावेज है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान का ग्रंथ है। यह औपनिवेशिक मानसिकता को त्यागकर राष्ट्रवादी सोच के साथ देश को आगे बढ़ाने का मार्गदर्शक ग्रंथ है। इसी भावना के साथ सामाजिक और तकनीकी विकास को ध्यान में रखते हुए आपराधिक न्याय प्रणाली से संबंधित महत्वपूर्ण कानून लागू किए गए हैं। दंड के बजाय न्याय की भावना पर आधारित भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय दंड संहिता लागू की गई है।
संविधान: राष्ट्र का हृदय और आत्मा

अपने स्वागत भाषण में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि भारत के संविधान ने देश की संस्कृति, भाषा, परंपराओं और रीति-रिवाजों की गहन विविधता को, साझा लोकतांत्रिक मूल्यों में निहित एक मजबूत और एकीकृत राष्ट्रीय पहचान में बदल दिया है। उन्होंने कहा कि संविधान राष्ट्र का हृदय और आत्मा है, जो इसकी बुद्धिमत्ता, लोकतांत्रिक लोकाचार और सामूहिक आकांक्षाओं का प्रतीक है।

न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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