नवजात शिशु की देखभाल। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, सुपौल। राष्ट्रीय नवजात शिशु सप्ताह के अवसर पर सदर अस्पताल परिसर में विशेष जनजागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य नवजात की सही देखभाल, पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े मूलभूत तथ्यों को सरल तरीके से आम जनता तक पहुंचाना था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस अवसर पर एएनएम स्कूल की छात्राओं एवं पिरामल फाउंडेशन की टीम द्वारा नुक्कड़ नाटक और गीतों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया गया, जिसे उपस्थित लोगों ने काफी सराहा। कार्यक्रम की शुरुआत नवजात की देखभाल में आने वाली चुनौतियों और भ्रांतियों को दूर करने के संकल्प के साथ हुई।
सात दिन बेहद संवेदनशील
प्रतिभागियों को बताया गया कि जन्म के बाद के पहले सात दिन अत्यंत संवेदनशील होते हैं और इस दौरान शिशु को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। कार्यक्रम में उपस्थित विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि पहले सात दिनों तक नवजात को नहलाना नहीं चाहिए और नाल पर किसी भी प्रकार का तेल, घी, पाउडर या अन्य पदार्थ नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
सर्दी से बचाव तथा तापमान बनाए रखने के लिए कंगारू मदर केयर (केएमसी) को अत्यंत प्रभावी और सुरक्षित तरीका बताया गया। इसमें मां या अभिभावक शिशु को अपने सीने से लगाकर रखते हैं, जिससे शारीरिक तापमान नियंत्रित रहता है और नवजात को प्राकृतिक सुरक्षा मिलती है।
विशेषज्ञों ने बताया कि यह तकनीक न केवल ग्रामीण परिवेश में बल्कि सीमित संसाधनों वाले परिवारों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। कार्यक्रम में मां के दूध को जीवन रक्षक अमृत बताते हुए, जन्म के पहले एक घंटे के भीतर बच्चे को स्तनपान कराने की सलाह दी गई।
6 महीने तक केवल मां का दूध
स्वास्थ्यकर्मियों ने यह भी कहा कि जन्म से छह महीने तक शिशु को केवल मां का दूध ही दिया जाना चाहिए, इसमें पानी, शहद या किसी भी प्रकार का बाहरी भोजन नहीं दिया जाए। यही बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने का सबसे सुरक्षित तरीका है।
कार्यक्रम में साफ-सफाई, नियमित चिकित्सकीय सलाह, हाथ धोने की आदत, तापमान नियंत्रण, संक्रमण से बचाव और प्रारंभिक टीकाकरण जैसे विषयों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया। उपस्थित महिलाओं को नवजात की देखभाल से जुड़े व्यावहारिक सुझाव दिए गए, जिनके माध्यम से वे अपने बच्चों को शुरुआती दिनों में सुरक्षित रख सकें।
कार्यक्रम में जिला स्वास्थ्य विभाग की भूमिका को सराहा गया और कहा गया कि ऐसी गतिविधियां सिर्फ अस्पतालों तक सीमित न रहकर ग्राम पंचायत स्तर पर भी आयोजित की जानी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक माताओं को इसका लाभ मिल सके।जागरूकता को मजबूत करने के लिए पंचायत प्रतिनिधियों और आशा कार्यकर्ताओं की भागीदारी भी आवश्यक बताई गई।
इस अवसर पर जिला योजना समन्वयक व जिला कार्यक्रम प्रबंधक बालकृष्ण चौधरी, रंजीत कुमार जयसवाल, पिरामल फाउंडेशन से चंदन कुमार सहित कई स्वास्थ्यकर्मी एवं अधिकारी उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि नवजात की देखभाल केवल स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की साझा जिम्मेदारी है। |