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अंबाला में पराली जलाने के केस हुए कम, लेकिन जींद-फतेहाबाद और हिसार ने तोड़ा रिकॉर्ड; क्या है वजह?

Chikheang 2025-11-27 02:08:17 views 806

  

प्रदेश में पराली जलाने के आधे से अधिक मामले इन्हीं तीनों जिलों में सामने आए हैं (फाइल फोटो)



राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पराली (धान के फसल अवशेष) जलाने के मामलों को अगले दो साल में शून्य पर लाने का लक्ष्य लेकर चल रहे हरियाणा में जींद, फतेहाबाद और हिसार के किसान मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।

प्रदेश में पराली जलाने के आधे से अधिक मामले इन्हीं तीनों जिलों में सामने आए हैं। राहत की बात यह कि अंबाला, फरीदाबाद, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल और सिरसा के किसानों ने पिछले साल के मुकाबले इस बार काफी कम पराली जलाई है।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

अभी तक प्रदेश में सिर्फ तीन जिले गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी जिले ऐसे हैं, जहां छह वर्षों में पराली जलाने का एक भी मामला सामने नहीं आया। हालांकि मेवात में यह क्रम टूट गया जहां पिछले पांच साल से पराली नहीं जलाई जा रही थी। इस बार यहा फसल अवशेष जलाने का एक मामला सामने आया है।

प्रदेश में इस बार पिछले साल के मुकाबले 50 प्रतिशत कम पराली जली है। पिछले साल जहां 21 नवंबर तक 1193 स्थानों पर पराली जलाई गई थी, वहीं इस साल अभी तक 603 स्थानों पर फसल अवशेष जलाने के मामले सामने आए हैं।

वर्ष 2020 में 21 नवंबर तक 3949, 2021 में 6642, 2022 में 3502 और 2023 में 2177 स्थानों पर पराली जलाई गई थी। अभी तक जींद में सबसे ज्यादा 176 स्थानों पर किसानों ने फसल अवशेषों में आग लगाई है। फतेहाबाद दूसरे स्थान पर है जहां 84 मामले सामने आए हैं। हिसार में 65 और कैथल व सोनीपत में 58-58 स्थानों पर पराली जलाई गई है।

प्रदेश में एक लाख 87 हजार किसानों को 16 लाख 31 हजार एकड़ भूमि की पराली के प्रबंधन के लिए प्रति एकड़ 1200 रुपये दिए जा रहे हैं। सब्सिडी पर 1882 हैप्पी सीडर और सुपर सीडर मशीनें दी गई हैं, जिनकी मदद से किसान बिना पराली हटाए सीधे गेहूं की बुवाई कर रहे हैं।

पराली प्रबंधन के लिए किसानों को डिकंपोजर वेटेबल पाउडर मुफ्त दिया जा रहा है। पहले चरण में 75 हजार एकड़ भूमि के लिए एक एकड़ पर एक पैकेट मुफ्त डिकंपोजर वेटेबल पाउडर वितरित किया गया है।

यह डिकंपोजर फसल अवशेष को पोषक तत्वों से भरपूर खाद में बदल देता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, फफूंदीजनित रोग घटते हैं और रासायनिक खादों के उपयोग में 20 से 30 प्रतिशत तक की कमी आती है।
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