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आगरा की धरती पर कई बार पड़े गुरु तेग बहादुर साहिब के पवित्र चरण, पवित्र मीठे जल का दिया वरदान

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गुरुद्वारा गुरु का ताल। फोटो: जागरण



जागरण संवाददाता, आगरा। सिख पंथ के नौवें गुरु, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब का आगरा से गहरा नाता रहा। यह पवित्र संबंध इतिहास का वह उज्ज्वल अध्याय है, जो संपूर्ण मानवता के लिए त्याग, धर्म-रक्षा और बलिदान का अद्वितीय संदेश देता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

शहर के दो पावन ऐतिहासिक गुरुद्वारे, सिकंदरा स्थित गुरुद्वारा गुरु का ताल और गुरुद्वारा माईथान इस महान परंपरा की जीवित स्मृतियां संजोए हुए हैं। दोनों स्थानों का संबंध गुरु साहिब के ऐतिहासिक प्रवास और गिरफ्तारी देने की घटना से गहराई से जुड़ी हैं।

गुरु तेग बहादुर साहिब ने अन्याय के आगे झुकने से मना करते हुए अत्याचारों के बावजूद धर्म-स्वतंत्रता की रक्षा का अमर मार्ग प्रशस्त किया। गुरुद्वारा गुरु का ताल और माईथान, दोनों स्थलों पर उनका प्रवास, करुणा, मानवता, त्याग और सेवा की अनन्त गाथा बनकर आज भी संगत के हृदयों में प्रकाश फैलाता है।

  
गुरु का ताल में दिया अन्याय के विरुद्ध आत्मसमर्पण

  

संत बाबा प्रीतम सिंह बताते हैं कि विक्रम संवत 1731 में जब औरंगजेब ने बलपूर्वक धर्मांतरण की नीति अपनाई, तब कश्मीरी पंडितों व हिंदू समाज की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर साहिब आनंदपुर साहिब से प्रस्थान कर पटियाला, जींद, रोहतक होते हुए गुरु का ताल पहुंचे।

यहां तालाब किनारे करीब नौ दिन प्रवास किया, जहां आज गुरुद्वारा भौरा साहिब स्थापित है और वहीं अखंड दीप निरंतर प्रज्वलित है। यही वह स्थान है जहां से गुरु साहिब ने धर्म रक्षा के लिए स्वयं गिरफ्तारी देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।

इसको लेकर लेकर पुरानी कहानी है कि सिकंदरा क्षेत्र में रहने वाले चरवाहे हसन अली ने गुरु साहिब से निवेदन किया कि यदि उन्हें गिरफ्तारी देनी ही है तो उनके हाथों दें, जिससे इनाम मिलने पर वह अपनी बेटी की शादी कर सके।

गुरु साहिब ने मानवता के इस सरल भाव का सम्मान करते हुए उसे अपनी मुंदरी और दुशाला दिया और मिठाई लाने भेजा। कीमती वस्तुओं को देखकर दुकानदारों ने सूचना दी और मुगल सैनिक पहुंच गए।

हसन अली को इनाम मिला और गुरु साहिब ने मुगलों को स्वयं को गिरफ्तार करने दिया। जहां उनकी गिरफ्तारी हुई, वही स्थान आज गुरुद्वारा मंजी साहिब के रूप में पूजनीय है। गिरफ्तारी के बाद गुरु साहिब को नौ दिनों तक गुरु का ताल में कैद रखा गया, वह स्थान गुरुद्वारा भौरा साहिब हैं।

इसके बाद उन्हें दिल्ली ले जाया गया और चांदनी चौक स्थित गुरुद्वारा शीशगंज साहिब पर उन्होंने अपना बलिदान दिया।

  
माईथान में दो बार पधारे गुरु साहिब, दिया मीठे जल का वरदान

गुरु तेग बहादुर साहिब का माईथान क्षेत्र से भी अत्यंत विशेष संबंध है। वह दो बार यहां पधारे, पहली बार उन्होंने एक माह तीन दिन का लंबा प्रवास किया।

गुरुद्वारा माईथान के हेड ग्रंथी कुलवंत सिंह बताते हैं कि माता जस्सी ने गुरु साहिब को कपड़े का थान भेंट किया था, जिसके कारण क्षेत्र का नाम माईथान पड़ा। तत्कालीन समय में क्षेत्र का पानी खारा था। गुरु साहिब के निर्देश पर जब एक विशेष स्थान पर कुआं खुदवाया गया।

उसमें मीठा जल निकला। यह पवित्र कुआं आज भी यहां गुरु कृपा के प्रतीक स्वरूप सुरक्षित है।
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