ब्रेस्टमिल्क में यूरेनियम मिलने से मचा था हड़कंप (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार के कुछ जिलों में स्टडी के दौरान स्तनपान कराने वाली महिलाओं के दूध में यूरेनियम (U-238) पाया गया है। इस रिपोर्ट ने चिंता जरूर बढ़ाई, लेकिन देश के शीर्ष वैज्ञानिकों ने साफ कहा है कि मिले हुए स्तर बेहद कम हैं और इससे बच्चों के स्वास्थ्य पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
स्टडी में 40 माताओं के दूध के सैंपल लिए गए और सभी में थोड़ी मात्रा में यूरेनियम मिला। सबसे ज्यादा औसत स्तर खगड़िया और सबसे ज्यादा व्यक्तिगत स्तर कटिहार में पाया गया।
स्टडी में क्या पाया गया?
AIIMS दिल्ली के डॉ. अशोक शर्मा ने बताया कि कुछ बच्चों में संभावित ‘नॉन-कार्सिनोजेनिक रिस्क’ दिखा, लेकिन वास्तविक नुकसान की संभावना बहुत कम है। वजह यह कि ज्यादातर यूरेनियम शरीर से मूत्र के जरिए निकल जाता है और दूध में बहुत कम मात्रा पहुंचती है।
स्टडी के अनुसार, दूध में पाए गए स्तर (0 से 5.25 माइक्रोग्राम/लीटर) WHO के मानकों से काफी नीचे हैं। WHO की सीमा 30 माइक्रोग्राम/लीटर है, यानि छह गुना ज्यादा।
वैज्ञानिकों ने डर को किया खारिज
NDMA के न्यूक्लियर वैज्ञानिक डॉ. दिनेश के असवाल ने कहा कि यह स्तर पूरी तरह सुरक्षित सीमा में है किसी तरह की घबराहट की जरूरत नहीं है। माताएं बिना चिंता के स्तनपान जारी रखें। उनका कहना है कि मिट्टी और चट्टानों में स्वाभाविक तौर पर थोड़ा-बहुत यूरेनियम पाया जाता है और विश्वभर में ऐसे अति-क्षुद्र स्तर सामान्य माने जाते हैं।
क्या नुकसान हो सकता है?
लंबे समय तक उच्च स्तर का यूरेनियम बच्चों में किडनी और न्यूरोलॉजिकल विकास पर असर डाल सकता है। लेकिन मौजूदा रिपोर्ट में मिला स्तर इतना कम है कि विशेषज्ञ इसे \“कमखतरा\“ मानते हैं।इसीलिए डॉक्टरों का स्पष्ट सुझाव है कि बच्चों के लिए स्तनपान ही सबसे सुरक्षित और सर्वोत्तम पोषण है। WHO और UNICEF भी यही सलाह देते हैं।
क्या होगा आगे का रास्ता?
शोधकर्ताओं ने बताया कि भविष्य में अन्य राज्यों में भी ऐसे अध्ययन किए जाएंगे ताकि भारी धातुओं और पर्यावरणीय प्रदूषकोंजैसे कीटनाशक आदिकी स्थिति का पता चल सके। शोधकर्ता पहले ही आर्सेनिक, लेड और मरकरी जैसे धातुओं पर भी काम कर चुके हैं।
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