पारिवारिक कलह व प्रेम संबंधों से उपजे तनाव में सबसे ज्यादा जान गंवा रहे लोग
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- राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने जारी की वर्ष 2023 की रिपोर्ट
- एक वर्ष में ही आत्महत्या के 15.5 प्रतिशत मामले बढ़ गए
- विशेषज्ञों का कहना, आपसी संवाद और समय पर परामर्श जरूरी
चयन राजपूत. जागरण, हल्द्वानी : राज्य में आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी चिंता का विषय बन गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट दर्शाते हैं कि बीते वर्षों में उत्तराखंड में आत्महत्या के मामलों में लगातार इजाफा हुआ है। इसमें पारिवारिक कलह, आर्थिक संकट, शिक्षा और रोजगार से जुड़ा दबाव तथा मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं इसके मुख्य कारण है। एक वर्ष में ही पारिवारिक कारणों से परेशान होकर 171 लोगों ने अपनी जान दे दी। जबकि युवाओं में प्रेम संबंधों से उत्पन्न तनाव के मामले में 137 लोगों ने आत्मघाती कदम उठाया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मंगलवार को राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने वर्ष 2023 की रिपोर्ट जारी की है। इसमें उत्तराखंड में 2022 के मुकाबले वर्ष 2023 में 15.5 प्रतिशत आत्मदाह के मामले बढ़ गए हैं। प्रदेश में जहां वर्ष 2022 में 814 लोगों ने आत्मघाती कदम उठाया तो वहीं वर्ष 2023 में 940 लोगों ने आत्महत्या की है। वर्ष 2023 में 57 पुरुष व 25 महिलाओं ने जान दी। इसके साथ ही आर्थिक नुकसान होने पर 23, शादी के बाद दिक्कत होने पर 91, परीक्षा में फेल होने पर 19, विवाहेत्तर संबंध पर 33, दहेज के चलते 15 लोगों ने अपनी जान दे दी।
आत्महत्या के ये हैं मुख्य वजहें
कारण - संख्या
बीमारी के कारण - 14
मानसिक तनाव - 08
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लव अफेयर - 137
रोजगार - 24
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वर्जन :
उत्तराखंड में अन्य राज्यों के मुकाबले आत्महत्या अभी भी काफी कम होते हैं। हालांकि लोगों को इस तरह के आत्मघाती कदम नहीं उठाने चाहिए। अपनी बातें परिवार के साथ साझा करनी चाहिए। सभी के साथ सामाजिक होना चाहिए। ऐसे में इंसान कम तनाव लेता है और इस तरह के आत्मघाती कदम कम उठाता है। - डा. जगदीश चंद्र, एसपी क्राइम
ये भी जरूरी
- 24 घंटे मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन की सुविधा हो
-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सरकारी अस्पतालों में परामर्श सेवाएं हों
- सभी अस्पतालों में मनोचिकित्सकों की सुविधाएं हों
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समय पर परामर्श और भावनात्मक सहारा आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोक सकता है। विद्यालयों और महाविद्यालयों में प्रशिक्षित काउंसलरों की नियुक्ति, परिवार को जागरूक करने वाले कार्यक्रम तथा सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य पर संवाद शुरू करना जरूरी है। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने से ही कलंक कम होगा और लोग बेझिझक काउंसलिंग लेने आगे आएंगे। सरकार और सामाजिक संगठनों के संयुक्त प्रयासों से ही आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर रोकथाम और बचाव की दिशा में सार्थक कदम उठाए जा सकते हैं।
डा. युवराज पंत, वरिष्ठ मनाेविज्ञानी, डा.सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय
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