यूनेस्को की सूची में शामिल होगा छठ महापर्व। फाइल फोटो
प्रशांत सिंह, पटना। प्रकृति, पर्यावरण, जल संरक्षण के साथ नारी सशक्तीकरण का प्रतिनिधित्व करता आस्था का लोक महापर्व छठ बिहार के लिए विशेष महत्व रखता है। अब देश के दूसरे हिस्से ही नहीं, विदेश में भी बड़ी संख्या में लोग छठ पर आस्था की डुबकी लगा रहे है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जिस महापर्व में स्व-अनुशासन, स्वच्छता से लेकर प्रकृति प्रदत्त मूल्यों का सम्मिश्रण हो, उसे वैश्विक फलक पर ले जाने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल भी बिहार के लिए महत्वपूर्ण है। संयोग से बिहार में विधानसभा चुनाव भी है।
इसके राजनीतिक निहितार्थ भी निकाले जा सकते हैं, पर जो छठ बिहार और बिहारियों के लिए भावनात्मक रूप से सर्वाधिक जुड़ा है, उससे विश्व को परिचित कराना यहां के लिए गौरव की बात है।
प्रधानमंत्री ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में रविवार को कहा कि सरकार लोक महापर्व छठ को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कराने की प्रक्रिया शुरू कर रही है। इसने एक बड़ा संदेश दिया है।
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देश की हिंदी पट्टी से शुरू हुआ यह चार दिवसीय अनुष्ठान वैश्विक फलक पर स्थापित व प्रतिष्ठित हो चुका है। इस पहल से यह भी स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री ने भारतीय संस्कृति और यहां की आस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कहीं अधिक ऊपर रखा है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने छठ का जगह-जगह उल्लेख किया था। हर जरूरतमंद के यहां राशन की व्यवस्था भी, ताकि छठ के अनुष्ठान में कहीं कोई परेशानी नहीं हो। इस अनूठी और दिव्य परंपरा का संरक्षण और उसे वैश्विक पहचान दिलाना, केवल सम्मान का विषय नहीं है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति, एकता और गौरव का प्रतीक है।
इसमें यूनेस्को की सूची में शामिल होने की सारी अर्हताएं विद्यमान हैं। वह चाहे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पण की अनोखी परंपरा हो, अर्घ्य अर्पण के लिए जलराशियों व वहां तक पहुंचने वाले रास्तों की साफ सफाई अथवा प्रसाद में मौसमी फल व अनाज की उपयोगिता।
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