कुईकांडा नाग देवता का रथ और कुल्लू दशहरा का फाइल फोटो।
दविंद्र ठाकुर, कुल्लू। Kullu Dussehra 2025, अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान नहीं बनाए है, बल्कि यहां पर देव समागम का अनूठा नजारा देखने को मिलता है। देव भूमि में देवी देवताओं का अपना आदेश चलता है। जब तक देवता की अनुमति नहीं होती तब तक वह किसी भी कारज में शिरकत नहीं करते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जिला कुल्लू के आनी खंड के तांदी गांव का अराध्य देव कुईकांडा नाग 365 साल बाद दशहरा उत्सव में भाग लेने के लिए अपने देवालय से रवाना हो चुके हैं। देवता के गुर विनोद ने बताया कि अराध्य देव कुईकांडा नाग पहली बार हामी भरी कि वह उत्सव में भाग लेंगे।
नाग देवता रथ यात्रा में भी भाग नहीं लेंगे। निथर के तांदी गांव से देवता अपने हारियान व देवलु के संग दशहरा उत्सव को रवाना हो गए हैं। पहला पड़ाव घियागी में करेंगे, जहां से दूसरे दिन देवता शनि मंदिर में पहुंचेंगे। तीसरे दिन एक अक्टूबर को देवता भुंतर पहुंचेंगे। दो अक्टूबर को दशहरा मैदान में भाग लेंगे।
कुईकांड़ा नाग देवता किसी भी प्रकार की छत, प्रवेश द्वार और टनल होकर नहीं गुजरते हैं। लगभग 180 किलोमीटर से पैदल चलकर देवता को हारियान व देवलु कुल्लू पहुंचाएंगे। इस यात्रा में तय किया गया है कि तांदी से किस गांव के लोग देवता को उठाएंगे, इससे आगे कौन सा गांव का कार्य रहेगा यह सब तय हो गया है। हर घर से एक व्यक्ति का आना अनिवार्य है। सोने के रथ में सज धज, हार श्रृंगार कर देवता दूसरी बार उत्सव में भाग लेंगे।
1660 में लिया था देवता ने दशहरा में भाग
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि कुईकांडा नाग देवता 1660 में पहली बार दशहरा उत्सव में भाग लेने आए थे। इसके बाद से देवता ने दशहरा उत्सव में भाग नहीं लिया। अब 365 साल के बाद फिर से देवता उत्सव में भाग लेने आ रहे हैं।
आपदा से बचाव करते हैं कुईकांडा नाग
तांदी के देवता कुईकांडा नाग को बूढ़ी नागिन माता का सबसे बड़ा पुत्र माना जाता है। इन्हें नौ नाग (नसेसर) के नाम से भी जाना जाता है। बूढ़ी नागिन माता के सरयोलसर झील में भी सभी देवता सीधे झील के चारों ओर परक्रमा करते हैं लेकिन कुईकांडा नाग उलटी परिक्रमा देते हैं। विशेष रूप से सूखे या प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए देवता को जाना जाता है।PoK protests,Muzaffarabad clashes,Pakistan government opposition,Awaami Action Committee,fundamental rights violation,Kashmiri refugees,PoK assembly seats,Gilgit-Baltistan,human rights,Jammu Kashmir
देवता महामारी को दूर भागने, बारिश देने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। तांदी, शेउगी, लटाडागई, घोरला, रूवा, ग्वाल, लुहरी में भी देवता के मंदिर है। देवता का मंदिर तीन गढ़ हिमरी, सिरिगढ, नारयण गढ की चोटी पर स्थित है। देवता के साथ छियारा, पांचवीर, जल देवता, मशान देवता, बंशीरा, न्या देवता, जाछनी देवता, काली भगवती भी वास करते हैं। देवता के रथ में माता भुवनेश्वरी माता, जलेश्वरी भी विराजमान है।
पहली बार आनी के तांदी गांव से कई वर्ष बाद देवता कुईकांडा नाग दशहरा उत्सव में भाग लेने को आ रहे हैं। देवता के बैठने के लिए स्थान तय कर दिया है।
- दोतराम ठाकुर, अध्यक्ष, देवी देवता कारदार संघ जिला कुल्लू।
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