दिघौरा गांव में डर का माहौल। (जागरण)
डिजिटल डेस्क, टेकारी (गया)। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग महज दो दिन दूर है, लेकिन गया जिले के टेकारी विधानसभा क्षेत्र के दिघौरा गांव में 29 अक्टूबर को हुए हिंसक हमले का असर अभी भी बरकरार है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के विधायक व प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार पर ग्रामीणों के कथित जानलेवा हमले के 11 दिन बाद भी गांव में भय का माहौल है। पुरुष फरार हैं, महिलाएं और बच्चे घरों में कैद हैं। हां, जिस बदहाल सड़क पर विवाद हुआ, उसके मरम्मत का काम जोरों पर जारी है। बुलडोजर, रोलर के साथ सड़क निर्माण तेजी से चल रहा है।
बड़ा सवाल यही है कि 11 नवंबर को होने वाली वोटिंग पर गांव के सभी लोग वोट डाल पाएंगे। ग्रामीणों का दावा है कि पुलिस की बर्बर कार्रवाई ने गांव को खौफ में डाल दिया है, जबकि एनडीए इसे विपक्षी साजिश बता रहा है। प्रशासन की पहल का इंतजार है।
बदहाल सड़क पर शुरू हुआ विवाद हिंसक हुआ
29 अक्टूबर की शाम को विधायक अनिल कुमार अपने चुनावी काफिले के साथ दिघौरा गांव से गुजर रहे थे। ग्रामीणों के अनुसार विधायक से गांव की जर्जर सड़कों पर बातचीत के दौरान विवाद बढ़ गया। गुस्साए ग्रामीणों ने उन्हें कार से उतारकर पैदल चलने को मजबूर करने की कोशिश की ताकि बदहाली का अहसास हो। बातें बढ़ीं तो पथराव शुरू हो गया।
आरोप है कि अनिल कुमार के सुरक्षाकर्मियों ने फायरिंग की। ग्रामीणों के हमले में विधायक के सिर और हाथ में चोटें आईं। उनके भाई और कई समर्थक भी घायल हुए, जबकि 7-8 वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। हमले में लूटपाट की भी शिकायतें हैं।
अनिल कुमार ने इसे हत्या की साजिश बताया और आरजेडी पर इल्जाम लगाया। हम पार्टी के प्रवक्ता राकेश रंजन ने कहा, यह जंगलराज लाने की साजिश है। विपक्ष लोकतंत्र का गला घोंट रहा है। वहीं विपक्ष ने इसे लोकतांत्रिक विरोध करार दिया।
पुलिस कार्रवाई से गांव में खौफ, महिलाओं आक्रोषित
घटना के तुरंत बाद पुलिस ने गांव को छावनी में बदल दिया। दिघौरा पंचायत के दिघौरा गांव में 44 नामजद और 150 अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। अब तक 9 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, जिनमें ज्यादातर ओबीसी समुदाय से हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस ने बेगुनाहों पर लाठियां बरसाईं, यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शा। बबीता कुमारी, पुष्पा कुमारी आदि महिलाओं ने बताया कि पुलिस रातों-रात आई और घर-घर तलाशी ली। ऐसा कई दिन चला।
इधर तीन दिन से कोई पुलिस-प्रशासन से कोई नहीं आया है। पुरुष भाग गए, अब गांव सूना पड़ा है। वोटिंग के दिन भी डर से बाहर नहीं निकलेंगे।
पुलिस के अनुसार यह कार्रवाई हमले की जांच के तहत थी। पुलिस पर गलत आरोप लगाया जा रहा है। घायलों का इलाज हो रहा है। सुरक्षा बढ़ा दी गई है। कोई राजनीतिक साजिश नहीं, सिर्फ स्थानीय विवाद का मामला है।
स्थानीय ठेकेदार सड़क निर्माण खुद से कर रहे हैं, मरम्मत का काम होना ही था। बारिश की वजह से काम डिले हुआ। इसका चुनाव से कोई संबंध नहीं है।
राजनीतिक प्रभाव: ध्रुवीकरण का खतरा
हमला टेकारी में जातिगत समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। वरिष्ठ पत्रकार उज्जवल कहते हैं, इस घटना से दोनों तरफ से ध्रूविकरण हो रहा है। लड़ाई सीधी है। अनिल कुमार (भूमिहार) का मुकाबला राजद के अजय दांगी (कोएरी/ओबीसी) में है। जन सुराज के शशि यादव भी अपनी मौजूदगी दिखा रहे हैं।
हमले के बाद ओबीसी नेताओं ने एनडीए की ओर से डैमेज कंट्रोल शुरू किया है, ताकि आगे-पीछे ध्रुवीकरण न हो। दो नवंबर को एनडीए नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हमले की निंदा की और कहा, यह हत्या की साजिश थी, लेकिन हम मजबूत हैं।
आठ नवंबर को चिराग पासवान ने टेकारी में रैली कर अनिल कुमार के समर्थन में प्रचार किया। उन्होंने कहा कि एनडीए की डबल इंजन सरकार फिर बनेगी।
दिघौरा पहुंचे हुए राजद नेता श्याम सुंदर ने बताया कि प्रशासन को पहल करनी चाहिए। यहां बच्चों और निर्दोषों को पुलिस तंग कर रही है। जो लोग बाहर थे, उनपर भी एफआईआर हो गई है। लोकतंत्र में बातचीत से समाधान निकालना चाहिए। दिघौरा से अनिल कुमार को समर्थन मिलता रहा है, सड़क की बदहाली ग्रामीणों का गुस्सा जायज था।
हिंसा नहीं होनी चाहिए थी। वे सवाल उठाते हैं कि 11 को चुनाव है, ऐसे में इतनी तेजी से रोड कैसे बन रहा है, पहले क्यों नहीं बना।
डर का साया, कम टर्नआउट की आशंका
11 नवंबर को टेकारी में वोटिंग है। दिघौरा जैसे गांवों में भय से लोग वोट डालने से कतरा रहे हैं। एक बुजुर्ग ग्रामीण ने बताया, पुलिस का डर है, लेकिन सड़क जैसी समस्याओं पर वोट तो देंगे। प्रशासन पहल करे तो गांव से फरार चल रहे युवक सब भी वोट डालेंगे। चुनाव आयोग ने सुरक्षा बढ़ाई है, लेकिन स्थानीय स्तर पर तनाव बरकरार है।
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