तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। साइबर गिरोह के नेटवर्क की तह में पहुंची जांच में पता चला कि ‘टीम आफ ट्यूटर्स’ नामक फर्जी कंपनी इस ठगी के पूरे खेल की ढाल बनी हुई थी।इस कंपनी के नाम पर कई बैंक खातों की श्रृंखला खोली गई थी, जो दिखने में पूरी तरह वैध लगते थे, लेकिन वास्तव में ये ठगी की रकम को इधर-उधर घुमाने के लिए बनाए गए मनी राउटिंग चैनल थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
साइबर थाना पुलिस की जांच में सामने आया है कि इस फर्जी कंपनी का कोई वास्तविक व्यवसाय नहीं था।न तो उसका कार्यालय मौजूद था, न जीएसटी पंजीकरण, न ही कोई वास्तविक ग्राहक।इसके बावजूद कंपनी के नाम पर खोले गए खातों में लाखों रुपये का लेन-देन नियमित रूप से होता था, जिससे बैंक अधिकारियों को भी यह एक सक्रिय संस्था का खाता प्रतीत होता था।गिरोह के सरगना शैलेश चौधरी और उसके साथियों ने डमी कर्मचारी बनाकर पते और पहचान के दस्तावेज तैयार किए,जो बैंक खाते खोलने के लिए पर्याप्त थे।इन खातों में विभिन्न राज्यों से ठगे गए रुपये को जमा कराया जाता था।
पुलिस को बरामद दस्तावेजों में ऐसे दर्जनों खातों के आवेदन पत्र, पैन कार्ड, और फर्जी कंपनी के लेटरहेड मिले हैं,जो इस नेटवर्क के संगठित ढांचे की पुष्टि करते हैं।हर खाते के साथ एक यूपीआई हैंडल और डिजिटल वालेट एड्रेस जुड़ा हुआ था, जिससे लेन-देन को पहचान पाना लगभग असंभव बना दिया गया था।
इन खातों का इस्तेमाल केवल एक या दो लेन-देन के लिए किया जाता था।जैसे ही ठगी की रकम खाते में आती,गिरोह के सदस्य तुरंत एटीएम से नकद निकाल लेते या उसे डिजिटल करेंसी में बदलकर आगे भेज देते।बाद में वही खाता या तो बंद कर दिया जाता था या निष्क्रिय छोड़ दिया जाता था, ताकि पुलिस के लिए जांच का सिरा और जटिल हो जाए।
साइबर फोरेंसिक जांच में मिले दस्तावेज की पड़ताल में सामने आया कि ‘टीम आफ ट्यूटर्स’ नाम का उपयोग दिल्ली, रांची, पटना और मुंबई के बैंकों में भी खाता खोलने के लिए किया गया था।इस गिरोह का नेटवर्क केवल गोरखपुर तक नहीं बल्कि अंतरराज्यीय स्तर पर सक्रिय था।साइबर थाना पुलिस की टीम बैंक शाखाओं के कर्मचारियों की भूमिका की जांच कर रही है,जिन्होंने बिना उचित सत्यापन के खाते खोल दिए।
‘फेक फर्म सिंड्रोम’ से किया गुमराह:
पुलिस की माने तो फर्जी कंपनियों के नाम पर खाता खोलना अब साइबर ठगी का नया ट्रेंड बन गया है।इससे न सिर्फ अपराधियों को पहचान छिपाने में मदद मिलती है,बल्कि ठगी की रकम को वैध कारोबारी लेन-देन जैसा रूप देकर बैंकिंग सिस्टम को गुमराह किया जा सकता है।पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह मामला फेक फर्म सिंड्रोम का सबसे बड़ा उदाहरण है,जहां ठगी के हर चरण को एक वैध व्यापारिक गतिविधि का रूप देकर वित्तीय अपराध को छिपाया गया।
साइबर सुरक्षा के लिए सलाह
पुलिस ने आम जनता से अपील की है कि ओटीपी, यूपीआई पिन या क्यूआर कोड किसी से साझा न करें, किसी अज्ञात लिंक या काल पर बैंक जानकारी न दें, और ठगी की घटना पर तुरंत 1930 या cybercrime.gov.in पर शिकायत करें। |