सीएआरआइ बरेली ने विकसित की जर्म सेल संरक्षण तकनीक, विलुप्ति से बचेंगी पक्षियों की नस्लें

deltin33 2025-11-6 18:08:39 views 973
  

प्रतीकात्‍मक च‍ित्र



अनूप गुप्ता, जागरण, बरेली। बर्ड फ्लू या किसी महामारी के प्रकोप में अगर पोल्ट्री के साथ अन्य पक्षियों की प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा पैदा होता है, तो अब उसे आसानी से बचाया जा सकेगा। केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (सीएआरआइ) के विज्ञानियों ने इस दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है। संस्थान में कई देशों से आए विशेषज्ञों के साथ मिलकर यह शोध हाल ही में पूरा किया गया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इस शोध में पक्षियों के अंडों में पाए जाने वाले प्रिमोर्डियल जर्म सेल (आदि जनन कोशिका शुक्राणु और अंडाणु की पूर्वकृतियां) को संरक्षित करने में सफलता प्राप्त हुई है। इन कोशिकाओं की मदद से पक्षियों की प्रजातियों को पुनर्जीवित करने के साथ उनकी संख्या को भी आसानी से बढ़ाया जा सकेगा। सीएआरआइ ने क्रास ब्रीडिंग के माध्यम से अब तक 38 नस्लों के पक्षियों को विकसित किया है।

  

इसके अलावा 20 देसी नस्लों की पोल्ट्री भी मौजूद हैं। लंबे शोध के बाद तैयार की गई इन प्रजातियों के बर्ड फ्लू या किसी महामारी के कारण विलुप्त होने की संभावना को लेकर वैज्ञानिक चिंतित थे। दिक्कत यह थी कि इस विषय पर संस्थान के पास विशेषज्ञ नहीं थे, इसलिए यूके, बेल्जियम और नाइजीरिया सहित कई देशों के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर यह अध्ययन किया गया।

संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सिम्मी तोमर ने बताया कि प्रिमोर्डियल जर्म सेल (पीजीसी) को संरक्षित करने की तकनीक विकसित करने में सफलता हासिल की गई है। इसके लिए बायोबैंकिंग और सरोगेट टेक्नोलाजी का प्रयोग किया गया है। इस तकनीक से अंडों के पीजी सेल्स को लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकेगा। यह विधि दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियों के संरक्षण और पुनर्विकास में अत्यंत सहायक सिद्ध होगी
विदेशी विशेषज्ञों के साथ 55 स्थानीय विज्ञानी भी रहे शामिल

बायोबैंकिंग और सरोगेट टेक्नोलाजी में संस्थान के पास विशेषज्ञ नहीं थे। इसलिए इस परियोजना में कई देशों से आए विज्ञानी के साथ संस्थान के करीब 55 स्थानीय वैज्ञानिकों ने भी हिस्सा लिया। यह शोध भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर), नई दिल्ली, इंटरनेशनल लाइवस्टाक रिसर्च इंस्टीट्यूट (आइलआरआइ), इथियोपिया, और सेंटर फॉर ट्रापिकल लाइवस्टाक जेनेटिक्स एंड हेल्थ (सीटीएलजीएच), यूके के संयुक्त सहयोग से पूरा किया गया।
संस्थान ने अधिक अंडा उत्पादन और तेज विकास वाली प्रजातियां कीं विकसित

सीएआरआइ अब तक अधिक अंडा और मांस उत्पादन वाली कई प्रजातियां विकसित कर चुका है। इनमें असील, कड़कनाथ, अंकलेश्वर, चित्तगोंग, बुसरा, डंकी, दाओथिगीर, घागस, कलास्थी, कश्मीर फेवरोला, निकोबारी, कैरी निर्भीक, कैरीब्रो समृद्धि, ग्राम प्रिया, वनराजा आदि प्रजातियां शामिल हैं। खास बात यह है कि चाब्रो हर साल 140 से 160 अंडे, वनराजा 170 से 190 अंडे, जबकि ग्राम प्रिया 180 से 200 अंडे तक दे सकती है। सीएआरआइ इन नस्लों के संरक्षण और विकास पर लंबे समय से कार्य कर रहा है। यह आम पोल्ट्री फार्मिंग से कहीं ज्यादा है।


दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए देश-विदेश के विज्ञानियों के साथ मिलकर प्रिमोर्डियल जर्म सेल को संरक्षित करने में सफलता हासिल की गई है। यह तकनीक पक्षियों की नस्लों को बचाने में कवच का काम करेगी।

- डा. सिम्मी तोमर, वरिष्ठ वैज्ञानिक, केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान
like (0)
deltin33administrator

Post a reply

loginto write comments
deltin33

He hasn't introduced himself yet.

1210K

Threads

0

Posts

3810K

Credits

administrator

Credits
388010

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com