औरंगाबाद की सभा में राहुल गांधी। जागरण
राज्य ब्यूरो, पटना। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राहुल गांधी का मंगलवार को एक चुनावी सभा में दिया गया भाषण पर विवादों के केंद्र में आ गया है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को औरंगाबाद के कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र में जन सभा की। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पार्टी उम्मीदवार और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के समर्थन में आयोजित सभा में कहा कि नौकरशाही हो या लेकर न्यायपलिका या फिर कारपोरेट सेक्टर इनमें 10 प्रतिशत उच्च जातियों को नौकरी मिलती है।
यहां तक की देश की सेना पर भी इन्हीं उच्च जातियों का कंट्रोल है। जबकि देश की 90 प्रतिशत आबादी ओबीसी, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक सत्ता की मुख्यधारा से बाहर है। उन्हें न अवसर मिलते हैं, न प्रतिनिधित्व। राहुल गांधी के इस बयान में बाद राजनीतिक गलियारों में बहस शुरू हो गई है।
राहुल गांधी ने अपने बयान को अपनी लंबे समय से चली आ रही सामाजिक न्याय और जाति जनगणना की मांग से जोड़ा और कहा कि अगर सच में संविधान की रक्षा करनी है, तो हमें जानना होगा कि कितने दलित, ओबीसी, महिलाएं और अल्पसंख्यक हमारे सिस्टम में शामिल हैं।
आंकड़े ही हमें बताएंगे कि असमानता कहां है। उन्होंने दावा किया कि 90 प्रतिशत भारतीयों को यदि सहभागिता के अधिकार नहीं मिलेंगे, तो लोकतंत्र अधूरा रह जाएगा। यह पहला मौका नहीं है कि राहुल गांधी ने जातीय असमानता के संदर्भ में सेना का नाम लिया है।
राहुल गांधी ने इससे पहले यह कहकर विवाद पैदा कर दिया था कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सैनिकों की पिटाई की और मोदी सरकार ने 2,000 वर्ग किलोमीटर भूमि चीन को सौंप दी।
उस समय न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने टिप्पणी की थी कि अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो ऐसी बातें नहीं कहेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का यह ताजा बयान उनकी जातीय प्रतिनिधित्व की राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश है, लेकिन सेना का उल्लेख उन्हें नए विवाद में ले आया है।
राहुल की इस टिप्पणी के बाद यह कहा जा रहा है कि सत्तापक्ष राहुल के इस भाषण को चुनावी मुद्दा बनाने में कोई चूक नहीं करेगा। हालांकि कांग्रेस इसे समानता और संवैधानिक अधिकारों की बहस बताने की कोशिश करेगी। |