deltin51
Start Free Roulette 200Rs पहली जमा राशि आपको 477 रुपये देगी मुफ़्त बोनस प्राप्त करें,क्लिकtelegram:@deltin55com

उत्तराखंड में स्थायी पलायन घटा, गांव वापसी ने जगाई उम्मीद

Chikheang 3 hour(s) ago views 196

  

सांकेतिक तस्वीर



केदार दत्त, जागरण

देहरादून: विषम भूगोल वाले उत्तराखंड को गांवों से हो रहे पलायन का दंश विरासत में मिला है। लेकिन, अब धीरे-धीरे ही सही परिस्थितियां बदल रही हैं। गांव की चौखट से निकलने वाले कदम अब राज्य के शहरों, कस्बों में ही थम रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पलायन निवारण आयोग के आंकड़े बताते हैं कि गांवों से स्थायी पलायन घटा है और रिवर्स पलायन ने उम्मीद जगाई है। वर्ष 2018 से 2022 के बीच स्थायी रूप से पलायन करने वालों का आंकड़ा 28,531 पर आ गया, जो वर्ष 2011-18 के बीच 1,18,981 था।

यही नहीं, सभी जिलों में बड़ी संख्या में प्रवासी गांव लौटे हैं। इनमें से 6282 गांवों में ही रहकर विभिन्न काम धंधों में रमे हैं। वे अन्य को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं।

पलायन के दंश से पर्वतीय और मैदानी, दोनों जिले जूझ रहे हैं। यद्यपि, पर्वतीय क्षेत्र के गांवों में यह रफ्तार अधिक है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से चली आ रही पलायन की समस्या उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी कम नहीं हुई।

नतीजा, पलायन के कारण गांव खाली होते चले गए और खेत-खलिहान बंजर में तब्दील। पलायन के दंश का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पिछले 25 वर्ष में 1726 गांव पूरी तरह से जनविहीन हो चुके हैं। बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं, जहां आबादी अंगुलियों में गिनने लायक रह गई है।

इससे चिंतित सरकार ने वर्ष 2017 में समस्या के कारणों और इसके समाधान के उपाय सुझाने के दृष्टिगत पलायन आयोग (अब पलायन निवारण आयोग) का गठन किया।

आयोग की पहली रिपोर्ट में बात सामने आई कि वर्ष 2011 से 2018 के बीच 3,83,726 व्यक्तियों ने अस्थायी और 1,18,981 ने स्थायी रूप से पलायन किया।

इसके पीछे आजीविका के अवसरों की कमी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव, वन्यजीवों से फसल क्षति जैसे तमाम कारणों सामने आए। यानी, बेहतर भविष्य की आस में लोग मजबूरी में पलायन करते चले गए।

इसके बाद सरकार ने पलायन की रोकथाम के दृष्टिगत कृषि, पशुपालन व डेयरी, मत्स्य, सहकारिता, उद्यान, स्वरोजगार, ग्रामीण विकास, पर्यटन जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया। साथ ही रिवर्स पलायन पर विशेष रूप से जोर दिया।

घर वापसी करने वालों के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, पलायन रोकथाम योजना, सीमांत क्षेत्र विकास योजना समेत अन्य योजनाएं लाई गईं। इसके कुछ सार्थक नतीजे भी आए। कई जगह लोग वापस अपनी जड़ों से जुड़े।

गांवों में मूलभूत सुविधाएं पसरीं तो स्वरोजगार की दिशा में भी कदम बढ़े। कोविड काल में तो साढे तीन लाख से ज्यादा प्रवासी वापस गांव लौटे, लेकिन इनमें अधिकांश परिस्थितियां सामान्य होने पर वापस लौट गए।

वर्ष 2022 में आई आयोग की दूसरी रिपोर्ट में पलायन को लेकर कुछ उजली तस्वीर दिखी। रोजगार, स्वरोजगार के लिए अस्थायी रूप से पलायन करने वालों की संख्या 3,07,310 पर आ गई। ये

ऐसे लोग हैं, जो गांवों से जुड़े हैं। साथ ही स्थायी पलायन का आंकड़ा भी 28,531 पर आ गया। इस वर्ष रिवर्स पलायन पर आई आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रवासी निरंतर ही अपनी जड़ों से जुड़कर गांव लौट रहे हैं।

6,282 व्यक्तियों की सूची सामने आई, जो न केवल गांव लौटे, बल्कि यहीं रहकर काम धंधे में रमे हैं। साथ ही सरकार की योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। उम्मीद जताई जा रही कि आने वाले दिनों में घर वापसी करने वालों की संख्या में और इजाफा होगा।

यहां से गांव लौटे प्रवासी

-169 विदेश से

-4769 देश के अन्य राज्यों से

-1127 राज्य के अन्य जिलों से

-217 जिले के नजदीकी कस्बों से  
इन उद्यमों में आजमा रहे हाथ

कृषि-बागवानी, पशुपालन, घरेलू उद्योग, हस्तशिल्प, सेवा व्यवसाय, पर्यटन, होम स्टे, दुकान-व्यापार।



पलायन की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के सार्थक नतीजे आ रहे हैं। मजबूरी में होने वाला स्थायी पलायन घटा है। साथ ही यहां के लोग रोजगार, स्वरोजगार राज्य के शहरों में ही कर रहे हैं। यही नहीं, रिवर्स पलायन बढ़ रहा है। यह एक अच्छा संकेत है।

-डा शरद सिंह नेगी, उपाध्यक्ष, पलायन निवारण आयेाग

  
चीन व नेपाल सीमा से सटे गांव हो रहे जीवंत

उत्तराखंड की सीमाएं चीन और नेपाल से सटी हैं। ऐसे में राज्य का सामारिक महत्व भी है, लेकिन सीमावर्ती गांव भी पलायन के दंश से अछूते नहीं है। इन गांवों को जीवंत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है और इसमें केंद्र सरकार का महत्वाकांक्षी वाइब्रेंट विलेज (जीवंत ग्राम) कार्यक्रम बड़ा संबल प्रदान कर रहा है।

प्रथम चरण में चीन सीमा से सटे राज्य के 51 गांवों को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया और विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ये गांव जीवंत हो रहे हैं। यही नहीं, जीवंत ग्राम कार्यक्रम 2.0 में नेपाल सीमा से सटे 40 गांव लिए गए हैं, जिन्हें सरसब्ज बनाने को कार्ययोजना तैयार की जा रही है। यही नहीं, प्रदेश सरकार भी अन्य सीमांत गांवों के विकास के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित कर रही है।

यह भी पढ़ें- हिमालयी रंगों और लोक धुनों से गूंजा निनाद महोत्सव

यह भी पढ़ें- Rajat Jayanti Uttarakhand: 25 साल में शहरों ने भरी उड़ान, पर्यटन व संस्कृति को दी नई पहचान
like (0)
ChikheangForum Veteran

Post a reply

loginto write comments

Explore interesting content

Chikheang

He hasn't introduced himself yet.

210K

Threads

0

Posts

710K

Credits

Forum Veteran

Credits
72388