पावर कॉर्पोरेशन द्वारा 30 साल पुरानी बिजली बिल की रसीदें मांगने से किसान परेशान हैं।  
 
  
 
जागरण संवाददाता, हापुड़। जिले के किसान पावर कॉर्पोरेशन के अव्यवहारिक फैसले से परेशान हैं। अब 30 साल बाद उनसे निगम कर्मचारियों द्वारा फर्जी तरीके से जारी की गई बिजली बिल की रसीदें मांगी जा रही हैं। इससे पहले किसानों ने तीन बार पावर कॉर्पोरेशन अधिकारियों को अपने बिजली बिल भुगतान के प्रमाण प्रस्तुत किए थे। जवाब देने के बजाय, पावर कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने अपने रिकॉर्ड में हेराफेरी का दिखावा किया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
इन 30 सालों में सत्ता की बागडोर पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। सैकड़ों किसान अपनी जमीन बेच चुके हैं या उस पर कॉलोनियां विकसित कर चुके हैं। पासबुक में दर्ज बिजली बिल की रसीदों को 20 साल तक सुरक्षित रखना नामुमकिन है। अब किसान परेशान हैं और निगम अधिकारियों के पास कोई माकूल जवाब नहीं है।  
 
पहले बिजली बिल पावर कॉर्पोरेशन के बहीखाते में जमा होते थे। इसके लिए किसानों को रसीदें जारी की जाती थीं और भुगतान की जानकारी उनकी पासबुक में दर्ज की जाती थी। 1995 में वहां तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों ने फर्जीवाड़ा किया। उन्होंने किसानों को बिल भुगतान की रसीदें देकर पासबुक में दर्ज कर लीं। ये रसीदें विभाग के बहीखाते में दर्ज नहीं की गईं।  
 
कम्प्यूटरीकरण न होने के कारण, किसानों को बकाया बिलों या जमा राशि के बारे में संदेश नहीं मिल रहे थे। जाँच में पता चला कि पावर कॉर्पोरेशन के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने फर्जी रसीद बुक छपवाकर इस धोखाधड़ी को अंजाम दिया। यह मामला 2005 में पावर कॉर्पोरेशन के वरिष्ठ अधिकारियों के ध्यान में आया। तब तक, लगभग 20,000 किसानों से जुड़ा ₹220 करोड़ का बिजली बिल घोटाला हो चुका था।  
 
इसके अलावा, समाधान खोजने के बजाय, पावर कॉर्पोरेशन ने चक्रवृद्धि ब्याज लगाना शुरू कर दिया। इससे घोटाले की राशि बढ़ती ही गई। स्थिति यह है कि 30 वर्षों से जिले में किसानों के खातों में लाखों रुपये की देनदारियाँ फर्जी तरीके से डाली जा रही हैं। पारिवारिक विभाजन के कारण, पीड़ितों की संख्या अब लगभग 50,000 तक पहुँच गई है। इस बीच, बकाया बिजली बिल 220 करोड़ रुपये से बढ़कर 700 करोड़ रुपये हो गए हैं।  
ऑनलाइन प्रक्रिया आसान नहीं   
 
ट्यूबवेल बिल घोटाले में पावर कॉर्पोरेशन ने बिल संशोधन के लिए एक पोर्टल शुरू किया है। किसानों से उनके बिलों की रसीदें मांगी जा रही हैं, लेकिन उनके पास उस अवधि की कोई पासबुक या रसीद नहीं है। इससे समाधान योजना को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।  
 
इस मामले में पहली बार आधिकारिक पत्र जारी किया गया है। पोर्टल भी शुरू हो गया है, लेकिन किसानों से जो प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है, उसमें उनके बिलों की रसीदें भी दर्ज हैं। किसान अब इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि 1995 से अब तक की रसीदें कहाँ से प्राप्त करें। पोर्टल मंगलवार से प्रभावी होगा, लेकिन जिस प्रकार के दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं, वह किसानों की समझ से परे है। अधिकारी अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं।   
  
नलकूप बिलों में धनराशि समायोजन के लिए एक पोर्टल शुरू किया गया है। पूरी स्थिति स्पष्ट की जा रही है और एक ज्ञापन जारी किया जाएगा। किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है। विस्तृत जानकारी संभागीय कार्यालयों से प्राप्त की जा सकती है। 
-एसके अग्रवाल, अधीक्षण अभियंता।   |   
                
                                                    
                                                                
        
 
    
                                     
 
 
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