गोरखपुर AIIMS में ब्रांड पर जोर, जेनरिक दवाएं इग्नोर; हजारों रुपये हो रहे खर्च
/file/upload/2025/11/2468584504029122757.webpदुर्गेश त्रिपाठी, जागरण गोरखपुर। बिहार के सिवान जिला अंतर्गत पचरुखी की 66 वर्षीय मीना देवी मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। सिवान में दवाओं से बहुत लाभ नहीं मिला तो लोगों ने एम्स गोरखपुर में जाकर दिखाने के लिए का। बेटे सुधीर कुमार के साथ मीना देवी बुधवार को मेडिसिन विभाग की ओपीडी में डाॅ. कनिष्क कुमार को दिखाने पहुंचीं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यहां डाॅ. कनिष्क कुमार ने आठ तरह की दवाएं लिखीं। आदेश जेनरिक का है लेकिन उन्होंने सभी ब्रांड नाम की दवाएं लिखीं। एक व्यक्ति ने कमरे में हिदायत भी दी कि जिस नाम से दवा लिखी है, वही लेना। पर्चा लेकर सुधीर कुमार प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र पहुंचे।
यहां बताया गया कि जो दवा लिखी गई है, उसमें से एक भी उपलब्ध नहीं है। किसी ने सस्ती दवाओं के लिए एम्स परिसर स्थित अमृत फार्मेसी पर भेजा। यहां किसी तरह बदलकर पांच दवाएं मिलीं लेकिन तीन नहीं मिल सकीं। जो पांच दवाएं मिलीं उनका रेट छूट के बाद 2822 रुपये हुआ। सुधीर कुमार ने कहा कि जब छूट के बाद इतने रुपये लग रहे हैं तो बिना छूट कितना लगता। बची तीन दवाएं खरीदने वह एम्स से बाहर खुले मेडिकल स्टोर की तरफ बढ़ गए।
27 वर्ष की चांदनी गुप्ता को हड्डियों में दर्द की शिकायत है। मेडिसिन की ओपीडी में डा. कनिष्क कुमार को दिखाया तो उन्होंने छह तरह की दवाएं लिखीं। सभी दवाएं ब्रांड नाम से लिखीं। अमृत फार्मेसी पर कैल्शियम ही मिल सकी। बाकी दवाओं के लिए बाहर के मेडिकल स्टोर पर जाना पड़ा। महराजगंज के 41 वर्षीय बेचू को एक महीने से बुखार है। महराजगंज में उपचार का फायदा नहीं हुआ तो एम्स आया। मेडिसिन के सीनियर डाक्टर ने खुद न देखकर जूनियरों से दवा लिखवाई। पर्चा लेकर अमृत फार्मेसी आया तो एक भी दवा नहीं मिली।
तीन रोगियों का मामला सिर्फ यह बताने के लिए है कि एम्स गोरखपुर में डाक्टर किस तरह कार्यकारी निदेशक और केंद्र सरकार के निर्देशों की हवा निकाल रहे हैं। स्पष्ट निर्देश के बाद भी डाक्टर ब्रांड नाम की दवाएं लिख रहे हैं। इसमें भी यदि अच्छी कंपनी की ब्रांडेड दवाएं लिखते तो कुछ बात होती, डाक्टर एकाधिकार वाली दवाएं लिख रहे हैं। यह वह दवाएं होती हैं जो सिर्फ वहीं मिलती हैं जहां कंपनी के लोग चाहते हैं।
यह भी पढ़ें- एक साल में बिकी 41 हजार शीशी कफ सीरप खोज रहा विभाग,ड्रग इंस्पेक्टरों को मेडिकल स्टोरों की सूची भेजकर दिया गया जांच का निर्देश
इन दवाओं पर मनमाना रेट लिखा होता है। इनकी गुणवत्ता हमेशा संदेह के दायरे में होती है लेकिन डाक्टरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। फैमिली मेडिसिन के एक डाक्टर के पर्चे पर लिखी दवाएं तो कुछ मेडिकल स्टोर पर ही मिलती हैं लेकिन यह इतनी महंगी होती हैं कि खरीदना सबके वश की बात नहीं होती है।
एम्स में मीडिया सेल की चेयरपर्सन डा. आराधना सिंह ने कहा कि ब्रांड नाम से दवा नहीं लिखना है। जल्द ही सभी डाक्टर कम्प्यूटराइज्ड पर्चा ही देंगे। एमआर के आने की जानकारी की जाएगी।
सुबह से शाम तक बैठे रहते हैं एमआर
एम्स प्रशासन हमेशा दावा करता है कि मेडिकल रिप्रजेंटेटिव (एमआर) का प्रवेश नहीं होने दिया जाता है लेकिन हकीकत यह है कि ओपीडी से लगायत डाक्टरों के कमरे में सुबह से शाम तक एमआर बैठे रहते हैं। अपनी कंपनी की दवाएं लिखवाने के साथ ही यह एमआर देखते हैं कि दुकानदार ने वही दवा दी है या बदल दी है। यदि एमआर की कंपनी वाली दवा नहीं खरीदी तो वह उसे वापस कराकर दुकान का नाम बताकर रोगी को वहां भेजते हैं। एम्स प्रशासन एमआर के हस्तक्षेप पर रोक लगाने में विफल साबित हो रहा है।
अच्छे उपचार, सस्ती दवा की आस में आते हैं
एम्स गोरखपुर में अच्छे उपचार और सस्ती दवा की आस में रोगी पूर्वांचल के साथ ही बिहार और नेपाल से आते हैं लेकिन यहां उन्हें महंगी दवाएं लेनी पड़ रही हैं। प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र पर नाम मात्र की ही दवा मिल पाती है। कई को दवाएं महंगी होने के कारण बिना खरीदे ही वापस चले जाते हैं।
जेनरिक लिखने में करते हैं खेल
एम्स के कुछ डाक्टर कम्प्यूटराइज्ड पर्चा देते हैं। इस पर दवा का ब्रांड नाम लिखते हैं। इसके बाद इस ब्रांड की दवा में मिले मालीक्यूल का नाम लिखते हैं। हिदायत यह दी जाती है कि जिस नाम की दवा लिखी है, वही लेनी है। अब डॉक्टर ने कह दिया तो रोगी उसी नाम की दवा की तलाश में भटकते हैं। यदि किसी दुकानदार ने मालीक्यूल के आधार पर दवा दे दी तो उसे वापस करा दिया जाता है। डाक्टर ऐसे ब्रांड की दवाएं लिखते हैं जो सिर्फ एम्स परिसर के बाहर की दो-चार दुकानों पर ही मिलती हैं। इसके अलावा पूरे देश में यह दवा तलाशने पर भी नहीं मिलती।
देर से आते, पहले चले जाते
गोरखपुर एम्स की ओपीडी में डाक्टर समय से नहीं आ रहे हैं। बुधवार को मेडिसिन विभाग की ओपीडी में डाक्टर सुबह 9:30 बजे आए और दोपहर 12:30 बजे निकल गए। इसके बाद दोपहर दो बजे आए और 3:30 बजे निकल गए। पूरी ओपीडी जूनियर डाक्टरों के भरोसे रही। उत्कृष्ट उपचार की आस में आए रोगियों को निराशा ही मिली। यह स्थिति तब है जब मेडिसिन विभाग की ओपीडी में सबसे ज्यादा रोगी आते हैं। बुधवार को 542 रोगी आए थे।
Pages:
[1]