वायु प्रदूषण से सिकुड़ रहा है दिल्ली वालों का दिमाग, बच्चों और किशोरों के मेमोरी स्कोर में भी 22% की कमी
/file/upload/2025/11/769061164620324035.webpअनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी का बढ़ता प्रदूषण दिल्ली वालों का दिमाग सिकोड़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार बढ़ते प्रदूषण के कारण दिल्ली के लोगों के ब्रेन वाॅल्यूम यानी दिमाग के आकार में 16 प्रतिशत तक की कमी देखी जा रही है। यह राष्ट्रीय औसत 12 से अधिक है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यह चिकित्सीय निष्कर्ष कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय शोध के तुलनात्मक विश्लेषण का परिणाम है। अमेरिका, यूरोप व एशिया में किए गए लाॅन्जिट्यूडिनल कम्युनिटी स्टडीज (लंबे समय तक समुदायों पर किए शोध) और एमआरआई आधारित न्यूरोइमेजिंग (मस्तिष्क स्कैन आधारित अध्ययन) के आधार पर विशेषज्ञों बताते हैं कि दिल्ली की जहरीली हवा में मौजूद अल्ट्रा फाइन कण पीएम 2.5, पीएम-1 फेफड़ों के रास्ते सीधे रक्त प्रवाह में पहुंचकर मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं।
ये कण मस्तिष्क के न्यूरो-इंफ्लेमेशन को बढ़ाते हैं, जिससे ब्रेन सेल्स कमजोर हो जाते हैं, यह मस्तिष्क के आकार को सिकोड़ने के साथ स्मृति, ध्यान, सीखने की क्षमता तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया पर गहरा असर डालते हैं। यह दीर्घकालिक व गंभीर नुकसान है। यदि अभी सख्त कदम नहीं उठाए गए तो आने वाली पीढ़ियों तक की मानसिक क्षमता प्रभावित होगी।
इसकी पुष्टि पद्मावती सिंघानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ पलमोनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के अध्यक्ष व एम्स के पूर्व निदेशक प्रो. डाॅ. जीसी खिलनानी और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के पलमोनरी एंड क्रिटिकल केयर एवं स्लीप मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डाॅ. अनंत मोहन भी करते हैं।
उनका कहना है कि वर्तमान में दिल्ली एक ऐसे पर्यावरणीय संकट से गुजर रही है, जिसकी गंभीरता केवल सांस या फेफड़ों की बीमारियों तक सीमित नहीं रह गई। नई मेडिकल रिसर्च बताती है कि दिल्ली की जहरीली हवा लोगों के मस्तिष्क पर सीधा प्रहार कर रही है। लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण ने ब्रेन हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति पैदा कर दी है।
प्रो. डाॅ. अनंत मोहन ने कहा कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से लोग भूलने की समस्या, ध्यान की कमी, चिड़चिड़ापन व निर्णय क्षमता में गिरावट जैसी दिक्कतों का सामना करने लगे हैं। प्रो. डाॅ. जीसी खिलनानी ने कहा कि प्रदूषण के कारण ‘कॉग्निटिव डिक्लाइन’ (संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट) दिल्ली में तेजी से बढ़ रहा है। चेतावनी दी कि यदि हालात ऐसे ही रहे, तो आने वाले वर्षों में डिमेंशिया (स्मृति ह्रास की गंभीर बीमारी) के मामलों में तेज बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
राष्ट्रीय शोधों के निष्कर्ष
आईसीएमआर (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) के अध्ययन में पाया गया कि लंबे समय तक पीएम–2.5 के संपर्क में रहने वाले भारतीयों में संज्ञानात्मक क्षमता में आठ से 12 प्रतिशत तक गिरावट आ जाती है। यह गिरावट दिल्ली जैसे अत्यधिक प्रदूषित शहरों में और तेज पाई गई है।
एम्स और आईआईटी दिल्ली के संयुक्त शोध में यह सामने आया कि राजधानी की खराब हवा स्कूल–कालेज के बच्चों की लर्निंग एबिलिटी (सीखने की क्षमता) और मेमोरी स्कोर (याद रखने की क्षमता) को प्रभावित कर रही है। लंबी अवधि का प्रदूषण बच्चों, किशोर और युवाओं के मेमोरी स्कोर में 18 से 22 प्रतिशत तक कमी ला रहा है।
सीएसआईआर और नीरी के दिल्ली-केन्द्रित अध्ययन में यह भी पाया गया कि जब पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइआक्साइड का स्तर गंभीर श्रेणी में पहुंचता है, तो उस अवधि में अटेंशन डेफिसिट, स्लो काग्निटिव रिस्पांस और सिरदर्द जैसी समस्याएं अचानक बढ़ जाती हैं।
अंतरराष्ट्रीय अध्ययन भी दे रहे चेतावनी
लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ (भारत केंद्रित अध्ययन) ने बताया कि उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में डिमेंशिया का खतरा 14 से 18 प्रतिशत तक है। सीएसआईआर (काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) नीरी (नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) के दिल्ली अध्ययन में पाया गया कि जैसे ही हवा में प्रदूषण बढ़ता है, वैसे ही लोगों में अटेंशन डेफिसिट (ध्यान की कमी) और स्लो काग्निटिव रिस्पांस (प्रतिक्रिया धीमी) जैसी समस्याएं तुरंत बढ़ जाती हैं।
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