विजय कुमार सिन्हा: बिहार में भाजपा की जातीय संतुलन और विकास की राजनीति का मजबूत चेहरा
/file/upload/2025/11/3740398635358887920.webpडिजिटल डेस्क, पटना। बिहार की जटिल जातीय और राजनीतिक शतरंज पर विजय कुमार सिन्हा का तेजी से उभरना भारतीय जनता पार्टी की सोची-समझी रणनीति का प्रतीक है। एक प्रभावशाली भूमिहार चेहरे के रूप में सिन्हा आज न सिर्फ पार्टी के परंपरागत उच्च जाति वोट बैंक को एकजुट रखे हुए हैं, बल्कि विकास और सुशासन की अपनी छवि से नए वर्गों को भी जोड़ रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जनवरी 2024 से बिहार के उपमुख्यमंत्री और अब नवंबर 2025 के विधानसभा चुनाव में अपनी पारंपरिक सीट लखीसराय से पांचवीं बार भारी मतों से जीत के बाद फिर उपमुख्यमंत्री बनने जा रहे विजय कुमार सिन्हा एनडीए सरकार में सम्राट चौधरी के साथ मिलकर उच्च जाति और अति पिछड़ा वर्ग के संतुलन का प्रतीक बने हुए हैं। भाजपा ने विधानसभा दल के उपनेता के रूप में बरकरार रखा है।
भाजपा की दोहरी उपमुख्यमंत्री फॉर्मूला और सामाजिक इंजीनियरिंग
विजय कुमार सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाना और सम्राट चौधरी (कुशवाहा) के साथ जोड़ी बनाना भाजपा की बिहार में सबसे सटीक जातीय गणित है। एक तरफ भूमिहार (उच्च जाति) और दूसरी तरफ कुशवाहा (बड़े अति पिछड़ा समुदायों में से एक) का यह संयोजन आरजेडी के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को सीधे चुनौती देता है। 2025 के चुनाव में एनडीए की 200 से ज्यादा सीटों की ऐतिहासिक जीत ने इस रणनीति की सफलता पर मुहर लगा दी है।
चुनावी गढ़ लखीसराय बनाए रखा
लखीसराय विधानसभा सीट (सिन्हा का राजनीतिक किला रही है। 2005, 2010, 2015, 2020 और अब 2025 में पांच बार लगातार जीत। इस बार उन्होंने कांग्रेस के अमरेश कुमार को 24,940 वोटों के बड़े अंतर से हराया। पहले जीत का अंतर कम रहता था, लेकिन अब जनाधार मजबूत हुआ है। फिर भी यह सीट हमेशा प्रतिस्पर्धी रही, इसलिए सिन्हा को हर बार जमीन पर मेहनत करनी पड़ती है। यही वजह है कि भाजपा उन्हें कभी हवा में नहीं रहने देती।
प्रशासनिक सफर की शुरुआत और तेज चढ़ान
सिन्हा का प्रशासनिक सफर 29 जुलाई 2017 को श्रम संसाधन मंत्री बनने से शुरू हुआ और यह पद उन्होंने 16 नवंबर 2020 तक संभाला। यहीं से उन्हें नीति-निर्माण और कार्यान्वयन का पहला बड़ा अनुभव मिला। इसके बाद पदों का सिलसिला तेज हुआ।
[*]25 नवंबर 2020 से 24 अगस्त 2022 तक बिहार विधानसभा के अध्यक्ष
[*]अगस्त 2022 से जनवरी 2024 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता
[*]जनवरी 2024 से अब तक उपमुख्यमंत्री (खान एवं भूविज्ञान, कृषि, पूर्व में सड़क निर्माण, कला-संस्कृति एवं युवा विभाग)
स्पीकर के रूप में इतिहास और टकराव
अध्यक्ष रहते सिन्हा ने बिहार विधानसभा में पहली बार 100% सवालों का जवाब दिलवाकर रिकॉर्ड बनाया। ऑनलाइन हेल्प डेस्क और “5 संकल्प” जैसी पहल शुरू कीं। लेकिन नीतीश कुमार से खुले मतभेद भी सामने आए। 2022 में महागठबंधन ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें हटाने की कोशिश की।
सिन्हा ने भावुक भाषण दिया और कहा, झूठे आरोपों पर इस्तीफा आत्मसम्मान के खिलाफ है, फिर भी गरिमा बनाए रखते हुए त्यागपत्र दे दिया। इस घटना ने उन्हें भाजपा खेमे में राजनीतिक शहादत का प्रतीक बना दिया।
विपक्ष के नेता के रूप में आग उगलते रहे
अध्यक्ष पद छोड़ते ही भाजपा ने उन्हें विपक्ष का नेता बना दिया। इस दौरान सिन्हा ने महागठबंधन सरकार पर तीखे हमले किए। तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों से मारपीट का मुद्दा हो या तेजस्वी-राहुल पर अप्पू-पप्पू वाले तंज, उनकी आक्रामक शैली ने सुर्खियां बटोरी और 2024 में वापसी का रास्ता साफ किया।
उपमुख्यमंत्री के रूप में कामकाज
उपमुख्यमंत्री बनते ही सिन्हा को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले विभाग खान एवं भूविज्ञान और बाद में कृषि सौंपे गए। उन्होंने खनन राजस्व दोगुना करने, मक्का उत्पादन बढ़ाने और सड़क-बिजली के विस्तार का दावा किया। राष्ट्रीय खनिज नीलामी में केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी के साथ सक्रिय भूमिका निभाई। उनका नारा रहा- जाति, भ्रष्टाचार और अपराध से मुक्त बिहार।
बुलडोजर वाला विवादास्पद अंदाज
2025 चुनाव प्रचार के दौरान लखीसराय के खोरियारी गांव में उनके काफिले पर पत्थरबाजी हुई। सिन्हा ने आरजेडी समर्थकों को जिम्मेदार ठहराया और कहा, “सत्ता में आए तो गुंडों के सीने पर बुलडोजर चलाएंगे”। अंगरक्षक को कैमरे के सामने फटकार लगाते हुए पूछा, गोली नहीं चला सकते तो बंदूक लेकर क्या कर रहे हो?। इन बयानों की कड़ी आलोचना हुई, लेकिन भाजपा के कोर वोटर में यह कानून-व्यवस्था का सख्त चेहरा वाला मैसेज हिट रहा।
कॉलेज से ही जुड़ गए थे एबीवीपी से
पांच जून 1967 को लखीसराय जिले के तिलकपुर गांव के साधारण परिवार में जन्मे सिन्हा ने 1989 में बेगूसराय के गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लिया। छात्र जीवन से ही एबीपीवी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। अपनी बात बेबाकी से रखते हैं। विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर उनकी पारी यादगार रही थी। पिता शारदा रमन सिंह स्कूल शिक्षक थे, जबकि मां सुरमा देवी गृहिणी। प्रारंभिक शिक्षा लखीसराय में ही पूरी हुई।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. शोभित सुमन कहते हैं, विधायी कुशलता, विपक्षी आक्रामकता और प्रशासनिक अनुभव का दुर्लभ कॉकटेल रखने वाले विजय कुमार सिन्हा आज भाजपा के उन चुनिंदा नेताओं में हैं, जिन पर पार्टी भविष्य में कोई भी दाव खेल सकती है। उनकी सबसे बड़ी चुनौती अपनी आक्रामक छवि को समावेशी विकास की छवि के साथ संतुलित करना है।
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