कार्बेट बाघ शिकार प्रकरण में पुराने दस्तावेजों से हटने लगी धूल, वन विभाग में मचा हड़कंप; कई अधिकारियों की बढ़ी बेचैनी
/file/upload/2025/11/4868879315252739218.webpसीबीआइ के हलफनामे और विभागीय पत्र भी हो रहे प्रसारित. File
विजय जोशी, देहरादून, सात साल पुराने बहुचर्चित कार्बेट बाघ शिकार प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती ने उत्तराखंड के वन विभाग में खलबली मचा दी है। केंद्र और राज्य सरकार के साथ पूर्व मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को नोटिस जारी होने के बाद विभाग के मौजूदा अधिकारी भी असहज हैं, वहीं कई रिटायर्ड अधिकारियों की भी धड़कनें तेज हो गई हैं। साथ ही इस प्रकरण से जुड़ी कई पुरानी फाइलें और दबे तथ्य अब फिर सामने आने लगे हैं। सीबीआइ के हलफनामे में और विभागीय पत्र भी इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित होने लगे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सुप्रीम कोर्ट में अगले तीन सप्ताह बाद होने वाली सुनवाई में रुकी हुई सीबीआइ जांच पर बड़ा फैसला आने की संभावना है। जिससे इस पूरे मामले में फिर से भूचाल आ सकता है। सीबीआइ के शपथपत्रों ने पहले ही वन अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय शिकारी गिरोह के बीच मिलीभगत की ओर इशारा किया है, जिसने मामले को और गंभीर बना दिया है। मामले की गंभीरता तब और बढ़ गई, जब सीबीआइ ने वर्ष 2020 और 2023 में सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दायर कर दावा किया कि जांच वन अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय शिकारी गिरोह की मिलीभगत की ओर संकेत करती है। सीबीआइ ने अधिकारियों के खिलाफ राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन और मजबूत साक्ष्य होने की बात कही है।
वर्षों पुराने आदेश और जांच रिपोर्ट फिर चर्चा में
सुप्रीम कोर्ट की इस कार्रवाई के बाद वर्षों पुराने दस्तावेज़ और जांच रिपोर्ट फिर से चर्चा का केंद्र बन गए हैं। एनजीओ टाइगर आई की याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट ने 10 जनवरी 2018 को केंद्र और राज्य को नोटिस जारी किया था। तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक जयराज की जांच रिपोर्ट में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, पूर्व कार्बेट निदेशक समेत अन्य अधिकारियों को गंभीर प्रशासनिक लापरवाही का दोषी पाया गया था।
राज्य सरकार का 27 अगस्त 2018 का एक गोपनीय पत्र भी चर्चा में है, जिसमें मार्च 2018 में एसटीएफ द्वारा पांच बाघों की खाल व हड्डियां बरामद करने का जिक्र है। इस पत्र में 28 जून 2018 की जांच आख्या के आधार पर तत्कालीन निदेशक, कार्बेट टाइगर रिज़र्व, तत्कालीन डीएफओ कालागढ़ और तत्कालीन डीएफओ लैंसडौन को प्रशासनिक शिथिलता का दोषी ठहराया गया था, साथ ही अन्य जिम्मेदार अधिकारियों पर भी उत्तरदायित्व तय करने के निर्देश दिए गए थे।
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