Chikheang Publish time 2025-11-18 03:37:22

मझोला मंडी की गुमराह करने वाली तस्वीर: सुरक्षा तंत्र से लेकर पानी तक समस्या, सफाई व पार्किंग का अभाव

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मुरादाबाद में मझोला मंडी की



जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। कृषि उत्पादन मंडी समिति, मझोला में अव्यवस्थाओं का बोलबाला है हालांकि इन दिनों मंडी लापरवाही और कागजी सुधारों की वजह से सुर्खियों में है। यह वही मंडी है जहां किसानों और व्यापारियों की सुविधा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च होने का दावा किया गया था, लेकिन हकीकत आज भी गड्ढों, जाम, जलभराव और टूटे सुरक्षा तंत्र के बीच दम तोड़ रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जागरण की पड़ताल में जो तस्वीर सामने आई, वह बताती है कि मंडी समिति के सारे वादे और योजनाएं कागजों से आगे बढ़ ही नहीं बढ़ पा रहे हैं। मंडी परिसर में सुरक्षा के इंतजाम ठीक नहीं है। इसके कारण निगरानी तंत्र पूरी तरह ठप हो गया है, जिसका खामियाजा रोजाना आने वाले किसानों, व्यापारियों और आढ़तियों को उठाना पड़ रहा है।

चोरी-छुप्पे माल निकालने से लेकर रात के समय संदिग्ध आवाजाही तक कई शिकायतें सामने आ चुकी हैं, लेकिन कैमरे ठीक कराने की जिम्मेदारी कोई विभाग नहीं ले रहा। किसानों का कहना है कि हमारा माल लाखों का होता है। यदि चोरी हो जाए तो जिम्मेदार कौन होगा ? मंडी में सबसे बड़ी समस्या पार्किंग की है।

ट्रैक्टर-ट्रालियां, पिकअप, आढ़तियों के वाहन और खरीददारी के लिए आने वाले ग्राहकों की गाड़ियां एक ही जगह खड़ी हो जाती हैं। न कोई निर्धारित स्लाट है, न दिशा-निर्देश। भीड़ बढ़ते ही मंडी जाम में बदल जाती है। सुबह और शाम के समय किसानों को घंटों तक निकलने का रास्ता भी नहीं मिल पाता।

पीने का पानी तक यहां मयस्सर नहीं हो पाता है। वाटर कूलर खराब पड़े हुए हैं। इससे मंडी के आढ़तियों में नाराजगी है। मंडी सचिव संजीव कुमार का कहना है कि मंडी की सफाई की व्यवस्था है। पीने के पानी के लिए नल ठीक कराए गए हैं। वाटर कूलर सही कराने के लिए प्रस्ताव भेज दिया है।
चार करोड़ खर्च, लेकिन सड़कें फिर भी बदहाल

2015 में मंडी समिति ने जलनिकासी, पार्किंग और सड़क सुधार पर लगभग चार करोड़ रुपये खर्च किए जाने का दावा किया था। योजना के तहत नई नालियां, गड्ढामुक्त सड़कें और स्थायी पार्किंग क्षेत्र विकसित होने थे, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि पहली बारिश होते ही पूरी मंडी तालाब में बदल जाती है। सड़कें जगह–जगह टूट चुकी हैं, कई स्थानों पर बड़े-बड़े गड्ढे बने हैं। भारी वाहनों की चाल से धूल उड़ती है और बरसात में कीचड़ फैल जाता है। किसान बताते हैं कि ट्रालियों का पहिया गड्ढों में धंस जाता है। चार करोड़ कहां खर्च हुए, ये तो कागज देखने वाले ही बता सकते हैं कि एक व्यापारी ने इस पर भी तंज किया।
सफाई का दावा कागज पर, जमीनी हालात खराब

मंडी में सफाई कर्मियों की नियुक्ति और नियमित सफाई का दावा हर महीने उठता है, लेकिन स्थिति पूरी तरह उलट है। कचरे के ढेर, सब्जियों के अवशेष, बीज के बोरे और पॉलीथिन पूरे परिसर में बिखरे दिखते हैं। नालियां जाम हैं, जिससे बदबू फैलती है। किसान कहते हैं कि यहां सफाई कर्मी आते तो हैं, लेकिन काम दिखता नहीं। किसानों के लिए विश्राम गृह, आधुनिक शेड, स्थायी गोदाम और खरीद-फरोख्त के बेहतर प्लेटफार्म जैसी योजनाएं वर्षों से फाइलों में दबी पड़ी हैं।

मंडी में न तो पर्याप्त शेड हैं, न किसानों को बैठने की जगह है। फसल के मौसम में किसान अपनी उपज लेकर खुले आसमान के नीचे खड़े रहते हैं। बारिश में उनकी उपज भीग जाती है, धूप में सूख जाती है। सुविधाओं के नाम पर सिर्फ ऊपरी प्रबंधन की बैठकें होती हैं, लेकिन क्रियान्वयन दूर-दूर तक नहीं दिखता।

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