cy520520 Publish time 2025-11-17 23:43:04

Bihar Election Result 2025: ईवीएम में ‘नंबर-1’ का जादू, कई सीटों पर उम्मीदवारों ने मारी बाजी

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ईवीएम में ‘नंबर-1’ का जादू, कई सीटों पर उम्मीदवारों ने मारी बाजी



राजू सिंह, बनियापुर (सारण)। सारण जिले की राजनीति में विधानसभा चुनाव 2025 ने इस बार एक अनोखा और रोचक ट्रेंड सामने लाया। जिले के कई प्रमुख विधानसभा क्षेत्रों में देखा गया कि ईवीएम पर क्रम संख्या एक पर दर्ज प्रत्याशियों ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

नतीजे आने के बाद यह पैटर्न और स्पष्ट हो गया कि कई सीटों पर नंबर-1 वाले उम्मीदवारों ने मजबूत बढ़त बनाई और अंत तक अपनी स्थिति को कायम रखा। इससे राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई कि आखिर इस बार नंबर-1 के प्रत्याशी इतने लोकप्रिय कैसे बन गए।

बनियापुर, मांझी, एकमा, छपरा, अमनौर और मढ़ौरा जैसे विधानसभा क्षेत्रों में मतदान व परिणामों के विश्लेषण से यह ट्रेंड और भी मजबूत प्रतीत हुआ। एकमा विधानसभा में क्रमांक-1 पर मौजूद धूमल सिंह शुरू से ही बढ़त बनाए रहे और अंत तक अपने प्रतिद्वंद्वी को कड़ी टक्कर देते रहे।

वहीं, परसा में पहले नंबर पर दर्ज करिश्मा राय को महिलाओं एवं युवा मतदाताओं का व्यापक समर्थन मिला, जिससे उनका प्रदर्शन काफी बेहतर रहा। अमनौर में भी क्रमांक-1 वाले प्रत्याशी ने दमदार चुनौती पेश कर सभी का ध्यान आकर्षित किया। इसी तरह मांझी, छपरा, बनियापुर क्षेत्र में भी देखने को मिला।

ग्रामीण इलाकों में कई मतदाताओं ने स्वीकार किया कि ईवीएम पर वोट डालते समय उनकी नजर सबसे पहले एक नंबर पर जाती है। कई बूथों से मिली प्रतिक्रियाओं में सामने आया कि कम पढ़े-लिखे मतदाताओं के लिए पहला नंबर सबसे आसान विकल्प माना जाता है।

वे इसे सीधा-सादा और स्पष्ट विकल्प समझते हैं। कई लोगों ने तो यहां तक कहा कि \“एक\“ को वे शुभ अंक मानते हैं, इसलिए भी वे इसे चुनने में सहज महसूस करते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, चुनाव प्रचार में भी एक नंबर वाले प्रत्याशियों को बढ़त मिलती है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी मतदाताओं में नंबर-1 याद रखना आसान होता है, जो मतदान के समय उनके निर्णय को प्रभावित करता है।

कई बार मतदाता केवल यह सोचकर वोट कर देते हैं कि ईवीएम पर सबसे ऊपर दिखाई दे रहा प्रत्याशी अधिक विश्वसनीय या सही विकल्प है। यह प्रवृत्ति विशेषकर उन इलाकों में अधिक देखी गई, जहां मतदाता शिक्षा और राजनीतिक जागरूकता का स्तर अपेक्षाकृत कम है।

दिलचस्प बात यह है कि कई बूथों पर मतदान कर्मियों और स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने भी इस पैटर्न को महसूस किया। चुनाव बाद होने वाली चर्चाओं में यह विषय प्रमुख रहा कि किस प्रकार केवल क्रम संख्या ने चुनावी किस्मत को प्रभावित किया। यह चुनाव इस बात का उदाहरण बन गया कि कई बार जनमानस का मनोवैज्ञानिक रुझान भी प्रत्याशियों को अप्रत्याशित बढ़त दिला देता है।

कुल मिलाकर, सारण जिले की राजनीति में इस बार ईवीएम के पहले नंबर ने निर्णायक भूमिका निभाई। चाहे वह मनोविज्ञान हो, सहज विकल्प का प्रभाव हो या मतदाता जागरूकता की कमी—कारण कुछ भी रहा हो, लेकिन इतना तो तय है कि इस चुनाव में नंबर-1 ने वाकई अपनी किस्मत चमका दी।
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