Bihar Election Result: महागठबंधन को ओवैसी और प्रशांत से ज्यादा इस पार्टी ने पहुंचाया नुकसान
/uploads/allimg/2025/11/4553151713507583305.webpडॉ चंदन शर्मा, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बहुजन समाज पार्टी ने भी एनडीए की जीत में महत्पूर्ण भूमिका निभाई है। मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी ने कुल 181 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन सिर्फ एक सीट रामगढ़ पर जीत हासिल की। जबकि पार्टी ने वोटकटवा की भूमिका बखूबी निभाई। महागठबंधन के लिए तो बसपा स्पॉइलर साबित हुई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रामगढ़ सहित एक-दो सीट पर ही बसपा से एनडीए को नुकसान हुआ। जबकि महागठबंधन को उसने 20 से ज्यादा सीटों पर नुकसान पहुंचाया। बसपा को चैनपुर, भोजपुर, मोहनिया, करहगर जैसी सीटों पर खूब वोट पड़े, जो एनडीए के जीत के मार्जिन से ज्यादा है। इससे एनडीए को फायदा पहुंचा।
वोटकटवा की भूमिका में बसपा जनसुराज जैसी पार्टी से भी आगे रही। ओवैसी का प्रभाव जैसा सीमांचल की सीटों को हराने में दिखा, उसी तरह यूपी सीमा के आसपास के विधानसभा क्षेत्रों में बसपा का बड़ा प्रभाव दिखा। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बसपा की यह रणनीति पिछड़े, मुस्लिम और दलित वोट बैंक को विभाजित करने में सफल रही, जिसने विपक्षी गठबंधन को नुकसान पहुंचाया।
बसपा की एकमात्र जीत: रामगढ़ पर मुकाबला सबसे रोमांचक
बसपा ने कैमूर जिले की रामगढ़ सीट पर अपनी इकलौती जीत दर्ज की। यहां पार्टी के उम्मीदवार सतीश कुमार सिंह यादव ने भाजपा के अशोक कुमार सिंह को महज 30 वोटों के अंतर से हराया। यह जीत बसपा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पार्टी ने 2020 के चुनाव में कोई सीट नहीं जीती थी।
चैनपुर सीट पर इस बार भी 2020 की तरह बसपा को ज्यादा मत प्राप्त् हुआ, लेकिन जीत नहीं मिल सकी। मायावती ने इस जीत को दलितों और पिछड़ों की आवाज करार दिया है। कुल मिलाकर उसका प्रदर्शन सीमित रहा, पर कुछ सीटों पर प्रभाव ठीक रहा।
महागठबंधन को दो दर्जन सीटों पर नुकसान
बसपा का सबसे बड़ा प्रभाव स्पॉइलर के रूप में देखा गया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के विश्लेषण से साफ पता चलता है कि लगभग दो दर्जन सीटों पर बसपा ने जीत के अंतर से अधिक वोट प्राप्त किए, जिनमें से ज्यादातर पर एनडीए ने जीत दर्ज की।
इससे साफ है कि बसपा ने महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस और सीपीआई-एमएल) के वोट बैंक को विभाजित किया, जिससे एनडीए को 90% मामलों में फायदा हुआ। यह तीन-तरफा मुकाबले का परिणाम था, जहां छोटी पार्टियां जैसे बसपा, एआईएमआईएम और जन सुराज ने विपक्ष को कमजोर किया।
प्रमुख 10 सीटों का आकलन देखें, जहां बसपा के वोट जीत के अंतर से ज्यादा थे। रामगढ़ के अलावा सब जगह महागठबंधन को नुकसान हुआ।
विधानसभा विजेता पार्टी हारने वाली पार्टी जीत का अंतर बसपा के वोट
रामगढ़
बसपा
भाजपा
30
72,689
चैनपुर
जेडीयू
आरजेडी
8,362
51,200
भोजपुर
भाजपा
आरजेडी
24,415
39,711
मोहनिया
भाजपा
आरजेडी समर्थित
18,752
32,263
करगहर
जेडीयू
कांग्रेस
35,676
56,809
बक्सर
भाजपा
कांग्रेस
28,353
29,118
दुमरांव
जेडीयू
सीपीआई(एमएल)
2,105
11,127
औरंगाबाद
भाजपा
कांग्रेस
6,794
19,776
अगियावां
भाजपा
सीपीआई(एमएल)
95
1,440
बख्तियारपुर
एलजीपीआर
आरजेडी
981
2,923
(नोट: रामगढ़ पर बसपा की जीत शामिल है, लेकिन अन्य सीटों पर स्पॉइलर भूमिका।)
ओवैसी की AIMIM के आसपास रहा वोट शेयर
विश्लेषकों का मानना है कि बसपा ने दलित और मुस्लिम वोटों को आकर्षित किया, जो पारंपरिक रूप से महागठबंधन का आधार रहा है। मायावती ने चुनाव से पहले बिहार में दलितों और पिछड़ों के मुद्दों पर फोकस किया था।
पार्टी ने युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विभिन्न जातियों को टिकट देकर संतुलन बनाने की कोशिश की, जैसा कि उनकी तीसरी सूची में देखा गया। चुनाव आयोग के अनुसार बसपा का कुल वोट शेयर 1.62 रहा। जबकि AIMIM को 1.85 प्रतिशत वोट मिला है।
100 सीटों पर स्पॉइलर बने छोटे दल
राजनीतिक विश्लेषक राजेश यादव का कहना है कि पार्टी का प्रदर्शन 2020 से बेहतर रहा है, लेकिन सीमित संसाधनों और बड़े गठबंधनों के बीच फंसने से ज्यादा सफलता नहीं मिली। बसपा की यह भूमिका भविष्य में बड़े गठबंधनों को सतर्क कर सकती है, खासकर 2029 के लोकसभा चुनावों में। मायावती, ओवैसी व प्रशांत की पार्टी ने लगभग सौ सीटों की जीत-हार को प्रभावित किया है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
कुल मिलाकर बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की भारी जीत (202 सीटें) के बीच बसपा जैसी छोटी पार्टियों ने विपक्षी एकता को चुनौती दी। महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमटने में बसपा योगदान भी अहम है। बसपा की यह कहानी दर्शाती है कि छोटे खिलाड़ी भी बड़े खेल को प्रभावित कर सकते हैं।
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