Chikheang Publish time 2025-11-16 09:12:57

एनडीए पर नहीं चला जनसुराज का दांव, जमकर हुई किरकिरी; वोट कटवा कहलाने लायक भी नहीं जुटा पाए समर्थन

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वोट कटवा कहलाने लायक भी जन सुराज नहीं जुटा पाए समर्थन। सांकेतिक फोटो



जागरण संवाददाता, भागलपुर। जिले की सातों विधानसभा सीटों पर जनसुराज पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारकर राजनीतिक ज़मीन तलाशने की कोशिश की थी, लेकिन उसका यह प्रयास तुक्का ही साबित हुआ।

परिणामों ने साफ कर दिया कि पार्टी न तो मजबूत उपस्थिति दर्ज करा पाई और न ही वोट कटवा के रूप में कोई असर दिखा सकी। सातों सीटों पर जीत का अंतर 10 हजार से अधिक रहा, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार किसी भी मुख्य मुकाबले को प्रभावित नहीं कर सके। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पार्टी की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सात में से चार सीटों पर उसके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे, दो सीटों पर चौथे और एक सीट पर छठे नंबर पर चले गए। वोट शेयर भी कई सीटों पर बेहद कम रहा।

जिले में सबसे अधिक 8,821 वोट बिहपुर से इसके प्रत्याशी पवन चौधरी को मिले। उन्होंने अपेक्षाकृत ठीक-ठाक प्रदर्शन कर तीसरा स्थान हासिल किया। इसके बाद पीरपैंती से घनश्याम दास को 5,644 वोट मिले, लेकिन वह भी मुख्य मुकाबले के करीब नहीं पहुंच सके।

नाथनगर में अजय राय को 5,233 वोट मिले और वे चौथे स्थान पर रहे, जबकि गोपालपुर में मनकेश्वर सिंह 4,701 वोट पाकर चौथे नंबर पर रहे। सुल्तानगंज में राकेश कुमार ने 4,402 वोट लेकर तीसरे पायदान पर रहे।

वहीं कहलगांव में मुस्लिम वोट बैंक को साधने के प्रयास में उतारे गए मंजर आलम को मात्र 3,348 वोट मिले और वे छठे स्थान पर खिसक गए। भागलपुर में ब्राह्मण चेहरे के रूप में लाए गए अभय कांत झा को 3,251 वोट ही मिले। इन सबकी जमानतें तक जब्त हो गईं।
पार्टी ने विभिन्न सीटों के सामाजिक समीकरणों के आधार पर खड़े किए थे प्रत्याशी

पार्टी ने विभिन्न सीटों के सामाजिक समीकरणों को देखते कहलगांव में मुस्लिम, भागलपुर में ब्राह्मण और पीरपैंती में आरक्षित वर्ग से उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन एनडीए के पक्ष में चली आंधी में उनका यह सामाजिक गणित भी धराशायी हो गया। न तो जनसुराज किसी खास वर्ग को जोड़ सका और न विरोधी दलों के वोट में सेंध लगा पाया।

सबसे अधिक चर्चा बिहपुर की रही, जहां पवन चौधरी शुरुआती चरणों में थोड़ी पकड़ बनाते दिखे थे, लेकिन अंततः एनडीए के मजबूत जातीय और संगठनात्मक आधार के सामने उनकी ताकत टिक नहीं सकी। न वह भाजपा का वोट काट पाए, न वीआईपी का।

इससे एक बात का पता चलता है यदि भविष्य में राजनीतिक जमीन तलाशनी है, तो उसे संगठन मजबूत करने, कुशल रणनीति बनाने और बूथ स्तर पर पकड़ मजबूत करने की प्रबल ज़रूरत है।
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