सुप्रीम कोर्ट से उत्तराखंड सरकार को बड़ा झटका, उपनल कर्मचारियों की हो गई बल्ले-बल्ले
/file/upload/2025/11/1974843766951846977.webpसुप्रीम कोर्ट ने सरकार की ओर से दायर पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। प्रतीकात्मक
जागरण संवाददाता, नैनीताल। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की ओर से दायर दर्जनों पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इन याचिकाओं में उपनल कर्मियों के नियमितीकरण के सम्बंध में दिए गए निर्णय पर पुनर्विचार की मांग की गई थी। सरकार ने पुनर्विचार याचिका में राज्य के पास बजट की कमी का हवाला देकर उपनल कर्मियों के नियमितीकरण में आ रही कठिनाई का भी उल्लेख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में उत्तराखंड हाई कोर्ट की ओर से कुंदन सिंह बनाम उत्तराखंड राज्य में दिए गए फैसले को सही ठहराया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की संयुक्त पीठ ने आदेश में स्पष्ट किया कि पुनर्विचार याचिकाओं में कोई त्रुटि नहीं मिली। जिसके लिए पुराने आदेश पर फिर से विचार करने की आवश्यकता हो। पीठ ने कहा कि 15 अक्टूबर, 2024 की समीक्षा करने के लिए पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं। पीठ ने पुनर्विचार याचिका के साथ ही इससे जुड़े कई अन्य मामलों को भी खारिज कर दिया गया। सभी मामले समान प्रकृति के थे और इनमें विभिन्न स्पेशल लीव पिटीशन (सिविल) और सिविल अपील से जुड़े फैसलों पर पुनर्विचार की मांग की गई थी।
पुनर्विचार याचिकाओं को दायर करने में हुई देरी को भी न्यायालय ने माफ कर दिया। हालांकि याचिकाओं को सूचीबद्ध करने के लिए ओपन कोर्ट में सुनवाई की मांग करने वाली सभी अर्जियों को अदालत ने अस्वीकार कर दिया। कार्रवाई रिकॉर्ड के अनुसार याचिकाओं के साथ कई अंतरिम आवेदन भी दायर किए गए थे। इनमें \“विलंब की माफी\“, \“ओरल हियरिंग\“, \“स्टे एप्लीकेशन\“, और \“खुली अदालत में सुनवाई की याचिका\“ जैसे आवेदन शामिल थे।
इधर नैनीताल हाई कोर्ट में उपनल कर्मचारियों की अवमानना याचिका पर सुनवाई 20 नवंबर को होनी है। इसको लेकर प्रदेश के हजारों कर्मचारियों की निगाहें लगी हैं। इसी बीच राज्य कैबिनेट ने उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण मामले में कैबिनेट की उपसमिति का गठन किया है। समिति से दो माह में रिपोर्ट मांगी गई है। 2018 में हाई कोर्ट ने उपनल कर्मचारियों का नियमितीकरण करने, समान कार्य के लिए समान वेतन देने के आदेश पारित किए गए थे। यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था।
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