Chikheang Publish time 2025-11-15 20:12:58

बिहार में एमवाई फैक्टर की हवा क्यों निकल गई? महिला वोट, ओबीसी समीकरण और बिखरे मुस्लिम वोटों ने बदल दिया खेल

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एमवाई फैक्टर नहीं किया काम



राधा कृष्ण, पटना। बिहार चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राजनीति में कोई समीकरण स्थायी नहीं होता। कभी जीत की गारंटी माने जाने वाला आरजेडी का पारंपरिक एमवाई फैक्टर (मुस्लिम–यादव) इस बार प्रभावी साबित नहीं हुआ। एनडीए ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की, जबकि आरजेडी 25 सीटों पर सिमट गई। ऐसे में बड़ा सवाल यह है—एमवाई समीकरण आखिर क्यों नहीं चला? इसके पीछे कई राजनीतिक, सामाजिक और रणनीतिक कारण रहे, जिनकी जड़ें वोटिंग पैटर्न से लेकर जातीय नए समीकरणों तक फैली हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
महिलाओं का विशाल वोट NDA की तरफ एकजुट

इस चुनाव का सबसे बड़ा फैक्टर रहा महिला मतदाताओं का प्रचंड समर्थन एनडीए को मिलना साथ ही चुनाव से ठीक पहले महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये की सहायता सोने पर सुहागा का काम किया है। वहीं उससे पहले की योजनाएं उज्ज्वला, हर घर नल-जल, पोषण और छात्राओं को आर्थिक मदद ने बिहार के वोटरों पर सीधा असर डाला है। जिस वजह से गांव-देहात से लेकर कस्बों तक महिलाएं बड़ी संख्या में NDA की ओर खिसक गई और प्रचंड बहुमत देने में महिलाओं ने जबरदस्त काम किया। इस “लेडी फैक्टर” ने एमवाई समीकरण के असर को बहुत हद तक निस्प्रभावी कर दिया।
मुस्लिम वोट इस बार एकतरफा नहीं गए

पिछले चुनावों में मुस्लिम वोट लगभग पूरी तरह RJD-कांग्रेस के पक्ष में जाते थे। लेकिन इस बार स्थिति बहुत ही अलगरही। जबकि AIMIM ने कई मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने मजबूत उम्मीदवार उतारे थे जबकि कांग्रेस में टिकट वितरण की असंतुष्टि साफ देखने को मिल रही थी। कुछ जगहों पर मुस्लिम समुदाय की स्थानीय पसंद अलग रही है पर कुछ सीटों पर बीजेपी के अल्पसंख्यक कार्ड ने सेंध लगाई जिससे परिणाम यह हुआ कि मुस्लिम वोटों में भारी बिखराव दिखा और एमवाई की “M” कमजोर पड़ गई।
यादव वोटों का एक हिस्सा NDA की तरफ खिसका

यादव समुदाय पर आरजेडी की पकड़ मानी जाती है, लेकिन इस बार कई सीटों पर बीजेपी-नीतीश ने यादव प्रत्याशी उतारे थे जबकि स्थानीय नेता और पंचायतों में सक्रिय चेहरे NDA के पक्ष में काम करते दिखे थे फिर भी कानून-व्यवस्था और स्थिरता का मुद्दा कुछ शहरी युवाओं को NDA की तरफ ले गया जिससे कुल मिलाकर यादव वोटों में 3–7% का स्विंग हुआ, जिसने कई सीटों पर खेल बदल दिया।
गैर–यादव OBC वोट NDA की रीढ़ बने

कुशवाहा, कुर्मी, धानुक, बिंद, निषाद, पासवान, और गैर–यादव पिछड़ों ने इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई है,
इन जातियों में NDA का प्रभाव पहले से ही मज़बूत था और इस चुनाव में भी यही वोटर NDA की जीत का “ब्राह्मास्त्र” बने रहे, गैर–यादव OBC वोटों का भारी झुकाव एमवाई समीकरण को और कमजोर कर गया है।
NDA का “जंगलराज” नैरेटिव असरदार रहा

एनडीए ने चुनाव भर लालू-राबड़ी शासन की याद दिलाने वाली कहानी पर जोर दिया जाए तो पोस्टर, बयान और नेताओं के भाषण लगातार “जंगलराज” की छवि उभारते रहे है।

इस प्रचार की वजह से युवाओं, मध्यम वर्ग और पहली बार वोट देने वालों के बीच आरजेडी के प्रति हिचक बढ़ी है। यह नैरेटिव ग्रामीण क्षेत्रों में भी असरदार रहा है।
तेजस्वी की लोकप्रियता, लेकिन संगठन कमजोर

तेजस्वी यादव की रैलियां भरीं, भीड़ उमड़ी, माहौल बना… लेकिन ज़मीनी स्तर पर बूथ प्रबंधन बहुत ही कमजोर

टिकट वितरण विवादित, वरिष्ठ नेताओं में समन्वय की कमी, कई सीटों पर स्थानीय स्तर पर पार्टी की पकड़ ढीली

इन कारणों से एमवाई का संभावित फायदा वोट में नहीं बदल सका।
छोटे दलों ने काटा RJD का आधार वोट

AIMIM, BSP, CPI-ML, और कुछ स्वतंत्र उम्मीदवारों ने मुस्लिम, दलित, पिछड़े वर्गों के वोटों में सेंध लगाई है। NDA का वोट तो “कंसोलिडेटेड” रहा, पर RJD का वोट खंडित होकर रह गया।



बिहार चुनाव 2025 का संदेश साफ है, पहचान की राजनीति अब अकेले चुनाव नहीं जिता सकती। महिला वोट + विकास योजनाएँ + OBC पर पकड़ + विरोधी वोटों का बिखराव ने एमवाई फैक्टर को हाशिये पर ला दिया।
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