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वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने का जश्न, लेकिन कश्मीर में किस बात पर हो रहा विरोध? मुस्लिम धर्मगुरु भी बोले

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राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में वंदे मातरम का पाठ अनिवार्य किए जाने पर बुधवार को मुस्लिम धर्मगुरूओं ने कड़ा एतराज जताया है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम को अनिवार्य किया, मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में हस्ताक्षेप है, इसलिए संबधित फैसले को सरकार वापस ले। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ के मौके पर एक राष्ट्रव्यापी पहल के तहत प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है कि सात नवंबर 2025 से सात नवंबर 2026 तक संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। यह कार्यक्रम छात्रों, युवाओं और नागरिकों में \“देशभक्ति और राष्ट्रीय गौरव की गहरी भावना\“ जगाने के लिए के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है।
जम्मू-कश्मीर में हुआ जमकर विरोध

जम्मू कश्मीर में विभिन्न इस्लामिक संगठनों और विचारधाराओं के प्रतिनिधियों के साझा संगठन मुत्तहिदा मजलिस ए उलेमा की आज एक बैठक हुई है। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में इस्लामिक धर्मगुरूओं ने वंदे मातरम को स्कूलों में अनिवार्य किए जाने पर एतराज जताया है।

उन्होंने कहा कि इस्लाम प्रत्येक मुस्लिम को अपने वतन से मोहब्बत करना,उसके लिए अपना सर्वस्व कुर्बान करना सिखाता है। इस्लाम के अनुसार, मुस्लिमों को अपने वतन और समाज की सेवा करनी चाहिए ,लेकिन वह उन गतिविधियों से दूर रहे जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हों और जो इस्लाम में अस्वीकार्य हों।
\“इस्लाम के विपरीत हैं कुछ बोल\“

मुत्तहिदा मजलिस ए उलेमा के अनुसार, वंदे मातरम के गीत में कुछ ऐसे बोल हैं,जो इस्लाम की मान्यताओं के विपरीत हैं। इसलिए मुस्लिमों और मुस्लिम छात्रों के लिए इसे अनिर्वाय करना अनुचित है और उनके धार्मिक मामलों में अनावश्यक हस्ताक्षेप है। ऐसा लगता है कि वंदे मातरम को अनिवार्य करने संबंधी जो आदेश जाीर किया गया है,वह यहां लोगों में विवाद पैदा करने और एक दल विशेष के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया गया है।इसलिए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उपराज्यपाल मनोज सिन्हों को इस मामले में तत्काल हस्ताक्षेप कर, संबध्ित फैसले को रद कराना चाहिए।
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