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Bihar Election: ‘बेंगलुरु से बिहार बदलो’ प्रशांत किशोर का नया मिशन, प्रवासी मजदूरों से कर रहे घर आकर वोट करने की अपील

बिहार का चुनावी बुखार बेंगलुरु तक फैला है, खासकर \“छोटा बिहार\“ कहे जाने वाले इलाकों में फैल गया है, जहां बिहारी प्रवासी आबादी बड़ी संख्या में रहती है। दिलचस्प बात यह है कि प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली जन सुराज पार्टी (JSP) इस बड़े प्रवासी समुदाय को टारगेट कर रही है और उनसे घर लौटने और “शिक्षा और रोजगार“ के लिए वोट देने की अपील कर रही है। ‘बेंगलुरु से बिहार बदलो’ PK की JSP की तरफ से शुरू किया गया एक अभियान है, जिसमें राज्य के बाहर रहने वाले बिहारियों से बिहार की राजनीतिक कहानी को फिर से लिखने में अग्रणी भूमिका निभाने का आह्वान किया गया है।



ऐसा अनुमान है कि बेंगलुरु में करीब आठ लाख बिहारी ब्लू-कॉलर वर्कर और लगभग दो लाख सफेदपोश पेशेवर हैं।



पूर्वी बेंगलुरु के डोड्डानेकुंडी की संकरी गलियों में \“छोटा बिहार\“ बसता है। निर्माण, परिवहन क्षेत्र में काम करने वालों से लेकर डिलीवरी करने वालों और तकनीकी विशेषज्ञों तक, आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस दक्षिणी शहर को अपना घर बना चुका है। लेकिन अपने घर की राजनीति अब दक्षिण की ओर पहुंच गई है और आज, वे चुनाव प्रचार के निशाने पर हैं।




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जबकि बिहारी आबादी बड़े पैमाने पर शहर के आसपास के इलाकों में बसी हुई है, जैसे यशवंतपुर का परिवहन केंद्र, पीन्या औद्योगिक एस्टेट, और व्हाइटफील्ड और HSR लेआउट के आसपास के इलाके, राजनीतिक संदेश इन इलाकों में फैल गए हैं।



JSP की तरह, कर्नाटक में सत्ता में मौजूद कांग्रेस भी समुदाय तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रही है।



राजस्व मंत्री कृष्ण बायरे गौड़ा जैसे कांग्रेसी मंत्रियों को शहर में बिहारी समुदाय के साथ छठ पूजा मनाते देखा गया है, जबकि कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने पिछले हफ्ते एक असामान्य राजनीतिक कदम उठाते हुए बेंगलुरु की कंपनियों से अपील की कि वे अपने बिहारी कर्मचारियों को तीन दिन की छुट्टी दें, ताकि वे घर जाकर मतदान कर सकें।



शिवकुमार ने कहा, “यह उचित ही है“ और इसे प्रवासी श्रमिकों के प्रति सम्मान का संकेत बताया, जिन्होंने “कर्नाटक की अर्थव्यवस्था को बनाने में मदद की है।“



किशोर की जन सुराज पार्टी के लिए संदेश साफ है - पलायन की समस्या तभी दूर हो सकती है जब शासन में सुधार हो।



बेंगलुरु में JSP के समन्वयकों में से एक डॉ. निश्चिथ के.आर. ने News18 को बताया कि बिहारी समुदाय के बीच उनके अभियान ने दो प्रमुख संदेशों पर ध्यान केंद्रित किया है।



डॉ. निश्‍चित, जो हाल ही में जन सुराज पार्टी (JSP) से जुड़े हैं और सामुदायिक स्वास्थ्य के डॉक्टर हैं, कहते हैं, “जब हम ट्रेन, बस या बाजार में लोगों से मिलते हैं, तो हम सीधे उनसे वोट नहीं मांगते। हम बस इतना कहते हैं कि उन लोगों को वोट मत दो, जिन्होंने तुम्हें जाति या धर्म के नाम पर वोट करने पर मजबूर किया। उनसे पूछो, किसने तुम्हें बेरोजगार बनाया, किसने तुम्हें अनपढ़ रखा? और फिर सोचो क्या ऐसे लोगों को दोबारा वोट देना चाहिए



इन्हीं गलत वोटों की वजह से तुम बिहार छोड़कर बेंगलुरु आए, क्योंकि अपने राज्य में तुम्हारे लिए कोई अवसर नहीं था।”



“बिहार का सबसे बड़ा निर्यात हैं उसके लोग”



जन सुराज का अभियान इस सोच को बदलने की कोशिश कर रहा है। अब वे कहते हैं- बिहार छोड़ने वाले लोग ही अब बिहार को बदलें। जो प्रवासी मजदूर JSP के लिए प्रचार कर रहे हैं, बताते हैं कि उन्हें औद्योगिक इलाकों में विरोध का सामना भी करना पड़ा। लोग कहते हैं, “तुम मजदूरों को काम से भटका रहे हो, घर जाकर वोट डालने के नाम पर।”



डॉ. निश्‍चित कहते हैं, “लोगों से हमारा सीधा संदेश है, जिन्होंने तुम्हें बेरोजगार, अनपढ़ और गरीब बनाया, उन्हें वोट मत दो।”



“इस बार सोच बदलो, वोट बदलो”



वह बताते हैं कि अभियान का मुख्य मकसद लोगों को ये समझाना है कि अब वोट मुद्दों पर डालो, रोजगार और शिक्षा के लिए। उन्होंने कहा, “हमने उन्हें समझाया कि अब तक जो भी वोट डाला, वही मिला, तुमने जाति पर वोट दिया, तो तुम्हारा विधायक हेलिकॉप्टर में उड़ रहा है। तुमने चेहरा देखकर वोट दिया, तो वही चेहरा टीवी पर चमक रहा है। अब इस बार सोचो कि अगर भविष्य चाहिए, तो रोजगार और शिक्षा के लिए वोट दो। यही हमारा संदेश है।”



दक्षिण भारत में बिहारियों तक पहुंच



जन सुराज पार्टी ने बेंगलुरु जैसे दक्षिण भारतीय शहरों को अपने प्रचार का अहम केंद्र बनाया है। यहां पिछले एक महीने में छोटी-छोटी बैठकें, पंपलेट बांटना और सोशल मीडिया समूह बनाना शुरू किया गया है।



28 साल के रवि कुमार, जो समस्तीपुर के रहने वाले हैं और बेंगलुरु के लग्गेरे इलाके में सात लोगों के साथ एक छोटे कमरे में रहते हैं, कहते हैं, “हम यहां सिर्फ मजदूर नहीं हैं, हम वोटर भी हैं। हर महीने पैसे घर भेजते हैं, लेकिन इस बार कहा गया कि पैसे नहीं, खुद आओ। जाओ और वोट डालो।”



मुकेश यादव, जो इलेक्ट्रॉनिक सिटी में काम करते हैं, कहते हैं, “हम बिहार इसलिए छोड़कर आए क्योंकि वहां नौकरी नहीं थी। अब कहा जा रहा है- वापस जाओ और उसे ठीक करो। अगर छुट्टी मिली, तो मैं जरूर जाऊंगा।”



कांग्रेस की पहल और JSP की प्रतिक्रिया



कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने भी सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने कंपनियों और ठेकेदारों से अपील की कि बिहार के प्रवासी मजदूरों को तीन दिन की पेड लीव (छुट्टी) दी जाए ताकि वे घर जाकर वोट डाल सकें।



उन्होंने कहा, “बिहारी मजदूरों ने बेंगलुरु के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है। अब वक्त है कि वे अपने राज्य के विकास में भी भागीदार बनें- वोट डालकर।”



हालांकि, जन सुराज पार्टी के सदस्यों का कहना है कि कांग्रेस की यह पहल थोड़ी देर से आई।



डॉ. निश्‍चित ने कहा, “कांग्रेस ने कर्नाटक में यह घोषणा की, लेकिन तब तक जो लोग वोट डालने के लिए निकलने वाले थे, वे सोमवार तक अपने गांव पहुंच चुके थे। यह कांग्रेस की एक और राजनीतिक चाल लगती है।”



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