deltin55 Publish time 2025-9-27 15:23:06

विकल्प खोजने वाले विचारक : किशन पटनायक ... ...



[*]बाबा मायाराम
हाल के वर्षों में वैकल्पिक राजनीति का शब्द का इस्तेमाल काफी हो रहा है। इसके सूत्रधार किशन पटनायक ही थे। अगर वैकल्पिक राजनीति में एक वैकल्पिक राजनैतिक संस्कृति नहीं होगी, जो लम्बे समय तक जमीनी काम करने और सिद्धांत व आदर्शमय जीवन से आती है, तो राजनीति में आदर्श और नैतिकता नहीं टिक पाएगी। यह धीरज और आदर्शों पर दृढ़ता से आती है।   
मौजूदा दौर में जब देश में लोकतंत्र और संविधान की चर्चा हो रही है। मैं किशन पटनायक को याद करना चाहूंगा। मुझे पिछले एक महीने से उनकी कर्मभूमि ओडिशा के बरगढ़ शहर में रहने का मौका मिला है और उनके कई निकट साथियों से उनके अनुभव सुनने मिल रहे हैं। मुझे स्वयं लम्बे समय तक उनका सानिध्य प्राप्त हुआ है। उन्होंने लम्बा सार्वजनिक सादगी से जीवन जिया। राजनीति की, राजनीति के बाहर जमीनी आंदोलनों का मार्गदर्शन किया और विचार निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।




आज इस क़ॉलम में उनकी राजनीति, जीवन और विचार पर चर्चा करना चाहूंगा, जिससे उनके जीवन की झलक मिल सके और यह जाना जा सके कि कुछ समय पहले तक राजनीति में ऐसे भी लोग थे जिनके जीवन और विचार में कोई भेद नहीं था।   
किशन जी (किशन पटनायक) का स्मरण करते ही कितनी ही बातें ख़्याल में आती हैं। उनकी सादगी, सच्चाई और आदर्शमय जीवन की, दूरदराज के इलाकों की लम्बी यात्राओं की, राजनीति के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की कोशिशों की और उनके ओजस्वी व्याख्यानों और भाषणों की, जहां लोग चुपचाप उनके भाषणों को सुनते रहते थे।




आज उनका स्मरण इसलिए भी जरूरी है कि आज अगर किशन जी होते तो सामयिक घटनाओं और आज की परिस्थिति पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते। शायद इसे बताना मुश्किल है कि वे फलां घटना पर क्या कहते। पर उनकी जो दृष्टि थी, उनका जो नजरिया था सोचने का, उसको समझने से हमारी दृष्टि साफ हो सकती है, कु छ रोशनी मिल सकती है।
किशन जी के व्यक्तित्व और विचार पर आगे बात करूं, इससे पहले उनके बारे में कुछ बातें बताना उचित होगा। जैसे किशन जी ओडिशा के कालाहांडी से ताल्लुक रखते थे, इसी इलाके में उनका जन्म हुआ था। वे सिर्फ 32 साल की उम्र में 1962में संबलपुर (ओडिशा) लोकसभा के सदस्य बने थे। राममनोहर लोहिया के सहयोगी थे। लोहिया के गुजर जाने के बाद उनके साथियों में भी सत्ता के लिए छटपटाहट दिखी, बिखराव हुआ। इस सबको देखते हुए समाजवादी आंदोलन से उनका मोहभंग हो गया था और फिर उन्होंने मुख्यधारा की राजनीति का एक सार्थक विकल्प बनाने की लगातार कोशिश की थी। लोहिया विचार मंच, समता संगठन, जनांदोलन समन्वय समिति और समाजवादी जन परिषद बनाकर नीचे से जनशक्ति को संगठित कर नई राजनीति को गढ़ने का प्रयास करते रहे।




वे कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी करते रहे। राममनोहर लोहिया के साथ मैनकाइन्ड के सम्पादक मंडल में काम किया। उन्होंने 'सामयिक वार्ता' नामक मासिक पत्रिका 1977 से शुरू की जो अब भी वाराणसी से निकल रही है। इस पत्रिका का संपादन करने का मुझे भी मौका मिला है।   
किशन जी का कोई घर नहीं था, न कोई जमीन, न संपत्ति और न ही कोई बैंक बैलेंस। 60 वर्ष की आयु के बाद रेलवे का पास लिया था। उन्होंने अपनी जरूरतें बहुत ही सीमित कर ली थी। उनके निकट सहयोगी बताते हैं कि उनका जोर युवाओं को प्रशिक्षित करना, गांव पर ध्यान देना, विकास की नीति पर सवाल उठाना रहता था। सादगी ऐसी थी कि जमीन पर सो जाते थे।साइकिल पर बैठकर गांव-गांव मीटिंग में जाते थे। पत्रों के माध्यम से देशभर के कार्यकर्ताओं से जुड़े रहते थे। रेल यात्रा करते थे। उनका सारा जीवन कार्यकर्ता बनाने और नए-नए लोगों को इस धारा में जोड़ने में लगा। सामाजिक बदलाव की चाह में रात-दिन लगे रहते थे।




किशन जी से मेरा संपर्क 80 के दशक में हुआ। पहली बार मैं मध्यप्रदेश के इटारसी में उनसे मिला था, वे वहां स्थानीय युवक राजनारायण से मिलने आए थे, जो अकेला ही आदिवासियों के बीच काम कर रहा था। इसके बाद मुझे लगातार उनसे मिलने, बात करने और साथ में यात्रा करने का मौका मिलता रहा। लिंगराज भाई और सुनील भाई के माध्यम से मैं लगातार किशन जी के संपर्क में रहा। वे मितभाषी थे, बहुत संकोची स्वभाव के थे। वे समय के बहुत पाबंद थे। अक्सर बैठकों में पीछे बैठते थे और सबको चुपचाप सुनते रहते थे और सबसे अंत में बोलते थे।

वे गांधी- लोहिया की धारा को आगे ले जाने वाले मौलिक चिंतक थे। उनका सारा राजनैतिक चिंतन किसी सामयिक घटनाओं और मैदानी स्थितियों व संघर्ष से उपजा हुआ था। वे लगातार देश भर में घूमते थे, सोचते और लिखते थे। उनसे प्रभावित होने वालों का दायरा बड़ा था जिसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर पत्रकार, अफसर, साहित्यकार, शिक्षाविद् और समाजशास्त्री थे और आज भी हैं।   
किशन जी मुख्यधारा की राजनीति का विकल्प खड़ा करना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि सभी राजनीतिक पार्टियों की नीतियां एक सी हैं, पर अलग-अलग होने का स्वांग करती हैं। जनसाधारण की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं। लेकिन इसकी बहुत जल्दी में नहीं थे। वे कहते थे विकल्प जल्दी में तैयार नहीं होते हैं, इसमें सालों लगते हैं और अगर जल्द खड़े हो भी जाएं तो जल्द ढह जाते हैं। इसका उन्हें आपातकाल के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार का अनुभव भी था।

इसलिए जब समता संगठन बना तो यह घोषणा की गई कि हम दस साल तक चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसके पीछे शायद अपने कार्यकर्ताओं को आदर्शों, सिद्धांत में दीक्षित करना और नीचे से हाशिये के समुदायों की जनशक्ति को संगठित करना होगा। साथ ही अगर लम्बे समय तक कोई भी कार्यकर्ता और नेतृत्व आदर्शमय जीवन जिएगा तो सत्ता में आने के बाद वह जल्द भ्रष्ट भी नहीं हो पाएगा, यह भी रहा होगा।
किशन जी के प्रभाव से देश के अलग-अलग कोनों में कई युवा अपना कैरियर छोड़कर राजनीति से समाज परिवर्तन के लक्ष्य में जुट गए थे। जिसमें ओडिशा, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों में कई साथी, समर्थक और सहानुभूति रखने वाले बरसों तक काम करते रहे। इनमें से एक लिंगराज भाई हैं, जो आज देश के कई आंदोलन से जुड़े हैं और ओडिशा में किसान आंदोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता हैं।

किशन जीकी एक खास बात यह है कि वे सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ताओं की समस्याओं से हमेशा चिंतित रहते थे। एक बार कानपुर में कार्यकर्ताओं की समस्याओं पर बोलते-बोलते उनका गला रुंध गया था। वे चाहते थे कार्यकर्ताओं के लिए समाज जीवन निर्वाह में मदद करे।
इसका अच्छा प्रयोग समता भवन बरगढ़( ओडिशा) में किया भी, जहां कई कार्यकर्ता बहुत ही न्यूनतम सुविधाओं में रहते थे और समाज के निचले तबके की समस्याओं पर आंदोलन करते और संगठन को मजबूती प्रदान करते। इस खपरैल वाला समता भवन कार्यकर्ताओं के लिए तीर्थ स्थान की तरह हो गया था, जहां से हमेशा प्रेरणा और अच्छाई मिलती है। अब नया समता भवन का कार्यालय बन गया है। आज यह भवन किसान, दलित, आदिवासियों के आंदोलनों का केन्द्र है। जय किसान आंदोलन का कार्यालय भी है।   

हाल के वर्षों में वैकल्पिक राजनीति का शब्द का इस्तेमाल काफी हो रहा है। इसके सूत्रधार किशन पटनायक ही थे। अगर वैकल्पिक राजनीति में एक वैकल्पिक राजनैतिक संस्कृति नहीं होगी, जो लम्बे समय तक जमीनी काम करने और सिद्धांत व आदर्शमय जीवन से आती है, तो राजनीति में आदर्श और नैतिकता नहीं टिक पाएगी। यह धीरज और आदर्शों पर दृढ़ता से आती है। अगर ऐसा नहीं होगा तो राजनैतिक दलों की विकल्प की चाह सत्ता मिलते ही खत्म हो जाती है। जैसे समाजवादी नाम वाले दलों का समाजवाद से कोई लेना-देना नहीं है, सिर्फ नाम ही बचा है। उनका समाजवाद सत्ता तक ही सीमित है।

किशन जी की उपस्थिति बौद्धिकता की चमक देती थी। उनमें गहरी अन्तरदृष्टि थी। वे घटनाओं के आर-पार देख लेते थे। वे एक शिक्षक की भांति प्याज के छिलकों की तरह किसी भी विषय की परतें खोलते चलते थे और जनता मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहती थी। उनकी दुनिया बड़ी थी। देश की घटनाओं से लेकर दुनिया की घटनाओं का सटीक विश्लेषण करते थे। हमारे देश में नई आर्थिक नीति व वैश्वीकरण के संकट को देखने वाले पहले व्यक्तियों में से थे। और विकल्पों की बात भी की। वे समाजवादी चिंतक तो थे पर उससे भी आगे वैकल्पिक शक्तियों को एक सूत्र में पिरोने वाले संगठनकर्ता भी थे। उनमें स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास की झलक देख सकते थे। किशन जी समता की धारा व देशज विचार के सेतु थे।   

उन्होंने कई ऐसे मुद्दों को अपने चिंतन के केन्द्र में रखा जिस पर अक्सर बात भी नहीं होती है। उन्होंने कई मौलिक विचार भी दिए। जैसे विकास की अवधारणा पर उन्होंने नए ढंग से विचार किया। जनांदोलनों की राजनीति की बात की। उनका मानना था कि वैकल्पिक राजनीति जनांदोलनों के गर्भ से पैदा होगी। उन्होंने न केवल जनांदोलनों का समर्थन व मार्गदर्शन किया, बल्कि उन्हें एक साथ आने के लिए प्रेरणा भी दी। जब पूंजीवाद के बारे में कहा जा रहा था कि इसका कोई विकल्प नहीं है, तब उन्होंने इस पर विचार किया और कई लेख लिखे और ऐसे महत्वपूर्ण लेख उनकी 'विकल्पहीन नहीं है दुनिया' नामक पुस्तक में संग्रहीत है।

इसके अलावा, विस्थापन, खनन, भुखमरी, किसानों की समस्या, दलितों और आदिवासियों के सवाल, नर-नारी समता और राजनीति में मूल्यों का ह्रास, बुद्धिजीवी, समाज, सभ्यता और पत्रकारिता जैसे कई मुद्दों पर उनके विचार प्रासंगिक है। कालाहांडी की भूख का मुद्दा उन्होंने बहुत जोर-शोर से उठाया था। किशन जी वैकल्पिक राजनीति के सूत्रधार थे। किशन जी अब नहीं हैं। 27 सितंबर 2004 को वे हमारे बीच से चले गए। आज उनकी पुण्यतिथि है। पर उनके विचार और उनका तपा हुआ, संत जैसा जीवन, हमेशा राह दिखाते रहेंगे, यही उनकी विरासत है, जिसे आगे बढ़ाया जा सकता है।




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